Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
८।१० ] अष्टमोऽध्यायः
[ २७ (३) अप्रत्याख्यान लोभ-गाड़ी के पहिए की सली समान है। वस्त्र में लगी हुई यह मली जैसे प्रति कष्ट से दूर होती है, वैसे ही यह लोभ भी अति कष्ट से दूर होता है।
(४) अनन्तानुबन्धी लोभ-कृमिरंग अर्थात् किरमिजी रंग समान है। जैसे वस्त्र में लगे हुए किरमिजी रंग जब तक वस्त्र का विनाश होता है वहाँ तक रहता है, वैसे ही यह अनन्तानुबन्धी लोभ प्रायः जीव मरे वहाँ तक रहता है। इसलिए यहाँ पर लोभ को हलदर आदि के रंग के साथ समानता किए हुए हैं।
* नोकषाय की व्याख्या-यहाँ पर नो शब्द का अर्थ साहचर्य अर्थात् साथ रहना है। जो कषायों के साथ रहकर अपना फल दिखाता है, वह नोकषाय है। नोकषायों के विपाकफल कषायों के आधार से होते हैं। जो कषायों के विपाक तीव्र हों तो, नोकषायों के विपाक भी तीव्र होते हैं। आम कषायों के आधारे फल देते होने से केवल नोकषायों की मुख्यता नहीं होती है । अथवा नो अर्थात् प्रेरणा। जो कषायों को प्रेरणा करे-कषायों के उदय में निमित्त बने, वह नोकषाय है। हास्यादि क्रोधादिक भी कषाय के उदय में निमित्त बनते हैं, इसलिए वे भी नोकषाय हैं।
* हास्यषट्क * हास्यादि षट्क नीचे प्रमाणे हैं[१] जिस कर्म के उदय से हंसना पाता हो, वह हास्य मोहनीयकर्म है । [२] जिस कर्म के उदय से रति उत्पन्न होती हो, वह रति मोहनीयकर्म है। [३] जिस कर्म के उदय से अरति उत्पन्न होती हो, वह प्ररति मोहनीय कर्म है। [४] जिस कर्म के उदय से भय उत्पन्न होता हो, वह भय मोहनीयकर्म है। [५] जिस कर्म के उदय से शोक उत्पन्न होता हो, वह शोक मोहनीयकर्म है । [६] जिस कर्म के उदय से जुगुप्सा उत्पन्न होती हो, वह जुगुप्सा मोहनीयकर्म है ।
* वेदत्रिक * वेदत्रिक नीचे प्रमाणे हैं--_..
[१] जिस कर्म के उदय से स्त्री के साथ मैथुन सेवन की इच्छा हो, वह पुरुषवेद मोहनीय है।
[2] जिस कर्म के उदय से पुरुष के साथ मैथुन सेवन की इच्छा हो, वह स्त्रीवेद मोहनीय है।
[3] जिस कर्म के उदय से स्त्री-पुरुष दोनों के साथ मैथुन सेवन की इच्छा हो, वह नपुंसक वेद मोहनीय है।