Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text ________________
(
५ )
A
श्रीजिनेश-स्तुतिः ॥
* रचयिता * शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न-कविभूषण परमपूज्य प्राचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशीलसूरिः
[१] अखिलेश ! गणोश ! जिनेश विभो !, परमेश परात्पर शुद्धमते । विनतं पतितं बहुकर्मगतं, जनतारण ! तारय भक्तममुम् ।।
[२] बलहीनमहो मतिहीनमहो, गुणहीनमहो गतिहीनमहो । तमसावृत-बोधनिधानमहो, जनतारण ! तारय भक्तममुम् ।।
[३] मम जीवनमीन-निभं सततं, विकलं सकलं भवसागरके । करुणाकर ! तारय तारय मां, जनतारण ! तारय भक्तममुम् ।।
[ ४ ] करुणावरुणालय ! कर्मतती, पतितं परिपालय पालय भो। हत बुद्धिबलं बहुतापितकं, जनतारण ! तारय भक्तममुम् ।।
[५] दुरितोषभरैः परिपूर्णजनः, वितनोति यदा तव पादनतिम् । परिशुद्धमुपैति कथा.- प्रथिता, जनतारण ! तारय भक्तममुम् ।।
__ [६] जनप्रिय-जिनेशस्य, पञ्चकं भक्तिसंयुतम् । प्रोक्त सूरि-सुशीलेन, कर्मणां मलशुद्धये ।।
Loading... Page Navigation 1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268