Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 252
________________ 5 मूल श्लोक प्राचीन स्तोत्र * मृत्यु- महोत्सवः * (हिन्दी अर्थ सहित) मृत्युमार्गे प्रवृत्तस्य वीतरागो ददातु मे । समाधिबोध (घी) पाथेयं यावत् मुक्तिपुरे पुरः ॥ १ ॥ " अर्थ - मृत्यु के मार्ग में चलते हुए, जब तक मैं मुक्तिपुरी में नहीं पहुँचूँ तब तक, हे वीतरागदेव ! मुझे समाधि और बोधि रूप पाथेय ( भोज्य सामग्री - भाता ) प्रदान करो ।। १ ।। 5 मूलश्लोक कृमिजालसमाकीर्णे, भज्यमाने न भेतव्यं, देहञ्जरे । ज्ञानविग्रहः ॥ २ ॥ जर्जरे यतस्त्वं अर्थ - कीटाणुग्नों कृमियों से युक्त इस जीर्ण शरीर - पिंजर को निरन्तर क्षीण होते हुए देखकर तुम मत डरो क्योंकि तुम ज्ञानस्वरूप हो, श्रात्मस्वरूप हो ।। २ ।। 5 मूलश्लोक ज्ञानिन् ! भयं भवेत् कस्मात् प्राप्ते मृत्युमहोत्सवे । स्वरूपस्थो पुरं याति देही देहान्तरस्थितिः ॥ ३ ॥ अर्थ - हे ज्ञानी आत्मन् ! मृत्यु महोत्सव प्राप्त होने पर तुम किससे डर रहे हो, क्योंकि शरीर-परिवर्तन के समय भी प्रात्मस्वरूप तो अखण्ड ही रहता है ।। ३ ।। क मूलश्लोक सुदत्तं प्राप्यते यस्मात्, दृश्यते पूर्वसत्तमैः । भुज्यते स्वर्भवं सौख्यं मृत्युभीतिस्त्यजेच्छनैः ॥ ४ ॥ अर्थ - 'सुदत्त' यानी यथाविधि प्रसन्नतापूर्वक दान देने से कई गुणा अधिक प्राप्त होता है । पूर्व महापुरुषों के दृष्टान्त से ऐसा दिखाई देता है कि उन्होंने प्रसन्नता से विधिपूर्वक मानवदेह का त्याग किया तो अजरामर परमपद को प्राप्त

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