Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 262
________________ ( ११२ ) उत्पद्यते जगत् सर्वम्, वर्धते कर्म-साधनैः। उदेति सविता प्रात - कति चास्तं दिनात्यये ॥ २६ ॥ * अर्थ-सारा जगत् उत्थान-पतन से युक्त है। कर्मों के साधन से बढ़ता रहता है। सूर्य प्रभात में उगता है एवं संध्या काल में प्रस्त होता है ॥ २६ ॥ तिस्रो दशाः हि सूर्यस्य, दृश्यन्ते चेखि नैकके । अपरस्य कथा केह, सर्व नाशेन विनश्यति ॥ ३० ॥ * अर्थ-एक ही दिन में सूर्य की तीन दशाएँ दिखाई देती हैं, तो फिर दूसरों की क्या कथा ! समग्र संसार नाशवान है ।। ३० ॥ .. त्रिपद्या उपदेष्टारो, वस्तूनि जगजिनाः । उत्पद्यन्ते विनश्यन्ति, तिष्ठन्ति कर्मयोगतः ॥ ३१ ॥ * अर्थ-महापुरुषों ने जगत् की समस्त वस्तुनों की तीन गतियां बताई हैं। कर्म के योग से उनकी उत्पत्ति, स्थिति एवं विनाश ये तीन गतियां होती हैं ॥ ३१ ॥ परिवर्तनशीलोऽयं, विश्वग्रामो निरन्तरम् । नरो दिवं समासाद्य, भूयो भूमि समाश्रयेत् ॥ ३२ ॥ * अर्थ-यह समस्त विश्व परिवर्तनशील है। मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त कर पुनः भूमि का प्राश्रय लेता है ।। ३२ ॥ जातस्य नित्यता नास्ति, स्तोककालनिवासिनः। मरणं क्षरणं नित्यं, जातस्योत्पत्ति तस्य च ॥ ३३ ॥ * अर्थ-थोड़े समय रहने वाले जन्मधारी की नित्यता है ही नहीं। उसका नित्य क्षरण एवं मरण होता रहता है ।। ३३ ॥ रामो दाशरथिर्जातो, नलो वालिश्च रावणः । भूपाला बहवो जाताः, जित्वारीन् बुभुजुर्महीम् ॥ ३४ ॥ * अर्थ-पूर्व में दाशरथी राम, नल, बालि एवं रावण जैसे अनेक भूपाल हुए । उन्होंने शत्रुओं को जीत कर पृथ्वी पर शासन किया ॥ ३४ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268