Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 254
________________ मूलश्लोक ( १०४ ) सुखं दुखं सदा वेत्ति, देहस्थः स मृत्युभीतिस्तदा कस्य, जायते स्वयं व्रजेत् । परमार्थतः ॥ ६ ॥ * श्रर्थ-जब तक श्रात्मा जीव देह शरीर में स्थित है, तब तक सदा सुख-दुःखों का अनुभव करता है । किन्तु यदि वह स्वयं ही चला जाय तो फिर देह शरीरादि का वियोग कराने वाली मृत्यु का भय वास्तव में किसको होगा ? ।। ६ ।। 5 मूलश्लोक संसारासक्तचित्तानां, मृत्योर्भीति भवेन्नृणाम् । मोवायते पुनः सोहि, ज्ञानवैराग्यवासिनाम् [ शालिनाम् ] ॥ १० ॥ * अर्थ-संसार में प्रासक्ति वाले मनुष्यों को मृत्यु-मरण का भय होता है । किन्तु जो ज्ञानगर्भित वैराग्यवान है उनके लिए वास्तव में वह मृत्यु प्रमोद - श्रानन्द का कारण होती है ।। १० ।। मूलश्लोक पुराधीशो यदा याति, सुकृतस्य बुभुत्सया । तदाऽसौ वार्यते केन, प्रपञ्चैः पञ्चभौतिकैः ।। ११ ।। * अर्थ - देह का अधिपति श्रात्म-राजा जब अपने पुण्य को भोगने की चाहना से अन्य विराट राज्य की ओर प्रस्थान करता है, तब पंचभूतों के विविध प्रपंच उसे कैसे रोक सकते हैं ! अर्थात् बाह्य कृत्रिम सुख प्रात्मा को प्राकर्षित नहीं कर सकते ।। ११ ।। फ मूलश्लोक मृत्युकाले सतां दुःखं, प्रभवेत् व्याधिसंभवम् । देहमोहविनाशाय, मन्ये शिवसुखाय च ॥ १२ ॥ * अर्थ - सत्पुरुषों को मृत्यु- समय की व्याधियाँ (रोग) शरीर के प्रति आत्मा के ममत्व का विनाश करने में औौर शिवसुख को पाने में सहायक बनती हैं, ऐसी मेरी मान्यता है ।। १२ ।।

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