Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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( १०६ ) असारेऽस्मिन् च संसारे, दुःखदावाग्निसंकुले ।
मरणं निश्चितं किन्तु, तरणं स्यात् प्रयत्नतः ॥ ११ ॥ अर्थ-दुःख-दावाग्नि से युक्त इस प्रसार संसार में मृत्यु तो निश्चित है किन्तु उससे मुक्ति प्रयत्न से ही सम्भव है ।। ११ ॥
जैन-सिद्धान्त-शास्त्रेषु, मरणं पञ्चविधं मतम् ।।
प्रथमं वीतरागानां, मरणं मंगलं मतम् ॥ १२ ॥ * अर्थ-जैनशास्त्रों में मृत्यु पाँच प्रकार की कही गई है। उनमें सर्वप्रथम वीतराग मरण परम मंगल माना गया है ॥ १२ ॥
विरक्तानां च देशाद्वा, सर्वस्माद् वा च छद्मनाम् ।
द्वितीयं मरणं प्रोक्त, पण्डिताख्यं च धीधनैः ॥ १३ ॥ * अर्थ-विरक्त छद्मस्थों एवं सर्वविरतिजनों के मरण को विद्वानों ने द्वितीय पण्डितमरण कहा है ॥ १३ ॥
सुदेव - गुरु - धर्मेषु, दत्त - चित्तोप - योगिनाम् ।
मरण - मवितानां वै, तृतीयं बाल - पण्डितम् ॥ १४ ॥ * अर्थ-सुदेव, सुगुरु, धर्मलग्न चिन्तना के योगियों तथा अपरिग्रही लोगों का मरण तीसरा बालपण्डित मरण कहा गया है ।। १४ ।।
चतुर्थ मरणं लोके, किञ्चिद् धर्मार्थसेविनाम् ।।
मिथ्यादशिनां प्रोक्तं, बालाख्यं मरणं पुनः ॥ १५ ॥ * अर्थ-संसार में किञ्चित् धर्मसेवा करने वाले एवं मिथ्यादष्टि लोगों का मरण चतुर्थ बालमरण कहा गया है ॥ १५ ॥
पञ्चमं दुष्ट-वृत्तीनां, मिथ्या - भवाभिनन्दनम् ।
जैनसिद्धान्त - मर्मज्ञैः, वणितं शास्त्रपद्धतौ ॥ १६ ॥ * अर्थ-पाँचवाँ दुष्ट मरण दुष्ट वृत्ति एवं मिथ्याभिमानी लोगों का होता है । ऐसा जैनदर्शन के मर्मज्ञों ने जनशास्त्रों में वर्णित किया है ।। १६ ।।