Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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( ६७ ) तत्त्वमूत्तिः परादित्यः परब्रह्मप्रकाशकः।
परमेन्दुः परप्रारणः, परमामृत - सिद्धिदः ॥ ६ ॥
अर्थ-(प्राप) तत्त्वमूर्ति, परादित्य, परब्रह्मप्रकाशक, परमेन्दु, परप्राण तथा परमामृतसिद्धि देने वाले हैं ।। ६ ॥
प्रजः सनातनः शम्भुरीश्वरश्च सदाशिवः ।
विश्वेश्वरः प्रमोदात्मा, क्षेत्राधीशः शुभप्रदः ॥ ७ ॥
अर्थ-(प्राप) प्रज, सनातन, शम्भु, ईश्वर, सदाशिव, विश्वेश्वर, प्रमोदात्मा, क्षेत्राधीश तथा शुभप्रद हैं ।। ७ ॥
साकारश्च निराकारः, सफलो निष्कलोऽव्ययः। निर्ममो निर्विकारश्च, निर्विकल्पो निरामयः ॥ ८ ॥
अर्थ-(आप) साकार, निर्विकार, सफल, निष्कल, प्रव्यय, निर्मम, निर्विकार, निर्विकल्प तथा निरामय हैं ॥ ८ ॥
अमरश्चाजरोऽनन्तः, एकोश्च शिवात्मकः।
अलक्ष्यश्चाप्रमेयश्च, ध्यानलक्ष्यो निरंजनः ॥ ६ ॥
अर्थ-अमर, अजर, अनन्त, एक, शिवात्मक, मलक्ष्य, अप्रमेय, ध्यानलक्ष्य तथा निरंजन हैं ।। ६ ॥
ॐ - काराकृतिरव्यक्तो, व्यक्त - रूपस्त्रयीमयः । ब्रह्मद्वयप्रकाशात्मा, निर्मयः परमाक्षरः ॥१०॥
अर्थ-ॐकाराकृति, अव्यक्त, व्यक्तरूप, त्रयीमय (उत्पाद व्यय ध्रौव्यमय) ब्रह्मद्वयप्रकाशात्मन्, निर्मय तथा परमाक्षर (ये सब प्रभु के नाम) हैं ।। १० ।।
दिव्यतेजोमयः शान्तः, परामृतमयोऽच्युतः।
प्राद्योऽनाद्यः परेशानः, परमेष्ठी परः पुमान् ॥ ११ ॥
प्रर्थ-(आप) दिव्यतेजोमय, शान्त, परामृतमय, अच्युत, प्राद्य, अनाद्य, परेशान, परमेष्ठी तथा परम पुमान् हैं ।। ११ ।।
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