Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 189
________________ ८।१२ ] अष्टमोऽध्यायः [ ३६ (१) स्थावर नामकर्म, (२) सूक्ष्मनामकर्म, (३) अपर्याप्तनामकर्म, (४) साधारणनामकर्म, (५) अस्थिर नामकर्म, (६) अशुभनामकर्म, (७) दौर्भाग्यनामकर्म, (८) दुःस्वरनामकर्म, (६) अनादेयनामकर्म तथा (१०) अयश नामकर्म । * स्थावर-जिससे जीव-प्रात्मा की इच्छा होते हुए भी वह अन्यत्र (दूसरे स्थल) नहीं जा सके, वह 'स्थावरनामकर्म' कहा जाता है। * सूक्ष्म-जिससे सूक्ष्म (नेत्र से नहीं देख सके ऐसे) देह-शरीर की प्राप्ति हो, वह 'सक्ष्मनामकर्म' कहा जाता है। * अपर्याप्त -जिससे स्वप्रायोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं हो सके, वह 'अपर्याप्तनामकर्म' कहा जाता है। * साधारण शरीर-जिससे अनन्त जीव-आत्माओं के बीच में एक साधारण (अर्थात् सर्व सामान्य एक) शरीर जो प्राप्त हो, वह 'साधारणशरीरनामकर्म' कहा जाता है । * अस्थिर-जिससे कर्ण (कान) तथा जीभ इत्यादि अस्थिर अंग प्राप्त हो, वह 'अस्थिरनामकर्म' कहा जाता है। * अशुभ-जिससे नाभि से नीचे के अशुभ अवयव प्राप्त हों तो, वह 'अशुभनामकर्म' कहा जाता है। जैसे -नाभि से नीचे के अवयव लोक में अशुभ गिनाते हैं । इसलिए कोई भी व्यक्ति पाँव इत्यादि लगा दे तो उस पर गुस्सा होता है । * दुभंग - जिससे जीव उपकार करने पर भी अप्रिय बनता है, वह 'दुर्भगनामकर्म' कहा जाता है। * दुःस्वर-जिससे स्वर कठोर (अर्थात्-कान में अप्रिय बने ऐसा) मिले तो, वह 'दुःस्वरनामकर्म' कहा जाता है । * अनादेय --जिससे युक्तियुक्त तथा उत्तम शैली से कहने पर भी वचन उपादेय नहीं बने तो, वह 'अनादेयनामकर्म' कहा जाता है । * अयश -जिससे परोपकार इत्यादि अच्छे कार्यों को करने पर भी यश-कीत्ति नहीं मिले तो, वह 'प्रयशनामकर्म' कहा जाता है। इस तरह नामकर्म के ६३ भेदों के संक्षिप्त वर्णन पूर्ण जानना । विशेष-नामकर्म के उक्त ६३ भेदों में १० बन्धन कर्म मिलाने में जो पा जाँय तो १०३ संख्या होती है। बन्धनकर्म की अपेक्षा पाँच और पन्द्रह भेद हैं। अर्थात् -जब बन्धन के पाँच भेद गिनने में प्रायें तब ६३ और पन्द्रह भेद गिनने में पायें तब दश संख्या बढ़ते १०३ संख्या होती है । अब बन्धन नामकर्म के पन्द्रह भेद और संघातनाम कम के पांच भेद पांच शरीर में करने में आ जाय, तथा वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श इन चार के अवान्तर भेद गिनने में नहीं पायें, तो १०३ में

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