Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
अष्टमोऽध्यायः मुहूर्त जघन्य स्थिति कही, वेदनीय को द्वादश सही । नाम तथा गोत्र कर्म की, स्थिति अष्ट मुहूर्त कही ॥ शेष सारे कर्म की स्थिति, अन्तर्मुहूर्त जानना । होती अनुभव कर्मस्थिति, परि-पाक से पिछानना ।। १५ ।। नाम जैसा काम भी सब, कर्म उदये होते हैं । हँसते मुख या रुदन करते, कर्म सब वेदाते हैं । कर्म ज्यों-ज्यों भोगवाये, विनाश उसका होता है । तप शुद्धि बिना ए निर्जरा, निष्काम रूप कहाता है ॥ १६ ॥ कर्म बन्धे नाम प्रत्यय, नाम के दो प्रर्थ हैं । कर्म सारे एक पक्षे, नाम कर्म समर्थ है ॥ सारी दिशामों से ग्रहीत, जोड़कर सब प्रदेश को । त्रय योग के तारतम्य से, जान लो विशेषता को ।। १७ ॥
चेतन नभ प्रदेश से ही, खींचता है कर्म को । अस्थिर कर्म ग्रहे नहीं, स्थिर ग्रहे जानो मर्म को ॥ प्रात्मविषयी सब प्रदेशे, कर्म के पुद्गल भरे । वे सभी कर्म हैं अनन्ता-नन्त पुद्गल से बने ॥ १८ ।। सुखरूप शातावेदनीय, फिर मोहनी समकित की । हास्य रति और पुरुषवेद, सात्त्विक स्थिति कही ॥ शुभ प्रायु जानो शुभ गति का, नाम गोत्र कहे सभी । ये सब प्रकृति पुण्य से, तत्त्वार्थ निर्मल निर्भरी ॥ १६ ॥
तत्त्वार्थाधिगमे सूत्रे, हिन्दीपद्यानुवादके । पूर्णोऽध्यायोऽष्टम: कर्म-बन्ध-स्थित्यादि-बोधकः ॥
॥ इति श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के अष्टमाध्याय का हिन्दी पद्यानुवाद पूर्ण हुमा ॥