Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
अष्टमोऽध्यायः
८ ॥
शाता अशाता भेद दोनों, वेदनीय के जान लो । मोहनीय के भेद प्रट्ठाईस शास्त्र से ही मानलो || अनन्तानुबन्धी और फिर, अप्रत्याख्यान है । प्रत्याख्यानी भेद तीसरा, संज्वलन प्रतिसूक्ष्म है ॥ कषाय चारों क्रोध मान, माया लोभ से गुणते । भेद सोलह होते जिसको, जानि मुनिजन टालते ॥ हास्य रति अरति तथा शोक भय जुगुप्सा साथ में । स्त्री नपुंसक पुरुष वेद, होते पच्चीस योग में ।। ६ ।। समकित मिश्र मिथ्यात्व, मोह भेदत्रय जो जोड़िये । भेद अट्ठाईस सारे, सूत्र सुनकर छोड़िये ॥ नारक तिर्यंच मनुष्य, तथा देव की जीवन-स्थिति । भेद चारे श्रायुष्यकर्मे, सूत्र की जानो रीति ।। १० ।।
5 मूलसूत्रम्
गति - जाति-शरीरा -ऽङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बन्धन - संघात संस्थान संहनन - स्पर्श-रसगन्ध - वर्णाऽऽनुपूर्व्यगुरु लघूपघात पराघाताऽऽतपोद्योतोच्छ्वास - विहायोगतयः प्रत्येकशरीर त्रस - सुभग- सुस्वर - शुभ सूक्ष्म-पर्याप्त स्थिराऽऽदेय यशांसि -सेतर राणि-तीर्थकृत्त्वं च ।। ८-१२ ॥
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उच्चैर्नीचैश्च ।। १३ ॥
दानादीनाम् ।। १४ ।।
* हिन्दी पद्यानुवाद
[ ६३
गति जाति भेदे तनु उपाङ्ग, बन्ध संघातन गिनो । संघण संस्थान वर्णं, गन्ध रस स्पर्श क्रमशः गिनो || श्रानुपूर्वी गतिविहाये, चौदह भेद जानिये । पराघात श्वासोच्छ्वास फिर, प्रातप को मानिये ।। ११ ।। उद्योत अगुरुलघु तीर्थंकर, निर्माण उपघात के । त्रस बादर पर्याप्त प्रत्येक, स्थिर शुभ बहु भाँति के ॥ सौभाग्य फिर प्रादेय सुस्वर, सुयश दसवाँ जानिये । स्थावर दशको योग करते, बयालीस पिछानिये ।। १२ ।।