Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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अष्टमोऽध्यायः
आत्मा सर्व समयों में समान पुद्गल नहीं ग्रहण करते हैं, अपने योग प्रमाणे अधिक-न्यून पूदगल ग्रहण करते हैं तथा विवक्षित किसी एक समय में समस्त जीवों को समान ही प्रदेशों का बन्ध हो, ऐसा नियम नहीं है।
जिन जीवों के समान योग होता है, उन जीवों के समान बन्ध होता है तथा जिन जीवों के जितने अंशों में योग की तरतमता होती है, वे जीव उतने अंशों में तरतमता वाला प्रदेशबन्ध करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक जोबात्मा प्रति समय अपने योग प्रमाण प्रदेशों का बन्ध करता है। इस तरह की सूचना 'योगविशेषात्' शब्द से मिलती है। (४) प्रश्न -वे कर्म स्कन्ध सूक्ष्म हैं ? या स्थूल हैं ? अर्थात्-जीव स्थूल कर्मपुद्गलों को
ग्रहण करता है कि सूक्ष्म कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है ? उत्तर - कर्मयोग्य पुद्गलस्कन्ध स्थूल-बादर नहीं होते हैं, किन्तु सूक्ष्मभाव में रहते हैं और वे ही कर्मवर्गणा योग्य हैं।
विशेष-इस विश्व में नयनों से नहीं दिख सके ऐसे अनेक प्रकार के सूक्ष्म पुद्गल सर्वत्र व्याप्त हैं, परन्तु सर्व पुद्गल कर्म रूप नहीं बन सकते हैं। जो पुद्गल अत्यन्त ही सूक्ष्म हों अर्थात् कर्म रूप बन सकें इतने ही सूक्ष्म हों, वे ही पुद्गल कर्म रूप में बन सकते हैं ।
__ जैसे जातेलोट-कणेक-रोटी इत्यादि बनने के लिए अयोग्य हैं, वैसे बादर पुद्गल भी कर्म बनने के लिए अयोग्य हैं।
कर्म रूप बन सकें ऐसे पुद्गलों के समूह को 'कार्मण वर्गणा' कहते हैं । जोव-आत्मा कार्मणवर्गणा में रहे हुए सूक्ष्म पुद्गलों को लेकर कर्म रूप बनाते हैं। यह जानकारी इस सूत्र में रहे हुए 'सूक्ष्म'शब्द से मिलती है। (५) प्रश्न-जीव-प्रात्म प्रदेश क्षेत्र में रहे हुए कर्मस्कन्धों का जीव-यात्म प्रदेशों के साथ
बन्ध होता है ? या अन्य क्षेत्र में रहे हए स्कन्धों के साथ बन्ध होता है ?
। अर्थात् -- जीव कौनसे स्थल में रहे हुए कर्मपुद्गलों को ग्रहण करता है ? उत्तर-जीव-प्रात्म प्रदेशावगाढ़ कर्मस्कन्धों के सिवाय अन्य प्रदेशान्तर रहे हुए स्कन्ध अग्राह्य हैं।
विशेष - अन्य पुद्गलों की भाँति कार्मण वर्गणा के पुद्गल सर्वत्र विद्यमान हैं । जीव-आत्मा सर्वत्र रहे हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करता नहीं है, किन्तु जितने स्थान में अपने जोव-प्रात्मा के प्रदेश हैं उतने ही स्थान में रहे हुए कार्मण-वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करता है।
___जैसे-अग्नि स्वयं जितने स्थान में है उतने ही स्थान में रहे हुए जलने योग्य पदार्थ को जलाती है। किन्तु अपने स्थान से दूर-बाहर की वस्तु को नहीं जलाती है। वैसे ही जीव-प्रात्मा अपने क्षेत्र में रहे हुए कर्मपुद्गलों को ग्रहण करता है, परन्तु अपने क्षेत्र से दूर रहे हुए कर्मपुद्गलों को ग्रहण नहीं करता है।
इस तरह की सूचना इस सूत्र में रहे हुए 'एकक्षेत्रावगाढ़' पद से मिलती है ।