Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ८।२६ प्रथम को छोड़कर के पांच स्थान (न्यग्रोध, सादि, कुब्ज, वामन तथा हुंड), अशुभ विहायोगति, प्रथम को छोड़कर पांच संहनन (ऋषभनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलिका तथा सेवार्त), तियंचद्विक (गति, प्रानु०), असाता वेदनीय नीचगोत्र, उपघात, एकेन्द्रियजाति, विकलेन्द्रिय, (बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय), नरक त्रिक (गति०, मानु०, मायु०), स्थावर दशक (वर्ण चतुष्क, सर्वघाती और देशघाती ४५
[केवलज्ञान-१, केवलदर्शन-१, पाँच निद्रा, बारह कषाय-१२ और मिथ्यात्व ऐसे सर्वघाती २०]
चार ज्ञान, तीन दर्शन, चार संज्वलन कषाय, नव नोकषाय और पांच अन्तराय, ये २५ देशघाती इस प्रकार ४५ ये सब मिलकर ८२ पाप प्रकृतियाँ कहलाती हैं। वर्ण चतुष्क शुभाशुभ की अपेक्षा पुण्य और पाप दोनों में सम्मिलित हैं ॥८-२६ ॥