Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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८।१२ ] अष्टमोऽध्यायः
[ ३५ प्रदेश की श्रेणी अनुसार गमन करने में जो कर्म नवीन मदद-सहायता देते हैं, उसको प्रानुपूर्वीनामकर्म कहने में आता है।
जीव-प्रात्मा चार गतियों में उत्पन्न होता है, इसलिए चार गतियों के नामपूर्वक चार आनुपूर्वी हैं -देवगति-प्रानुपूर्वी, मनुष्यगति प्रानुपूर्वी, तियंचगति प्रानुपूर्वी तथा नरकगति आनुपूर्वी ।
जो कर्म वक्रगति से देवगति में जाते हुए जीव-पात्मा को उत्पत्ति के स्थान में पहुँचने में अर्थात्-प्राकाशप्रदेश की श्रेणी के अनुसार गमन करने में मदद-सहायता करता है, उसे देवगतिआनुपूर्वी कर्म जानना। इसी तरह अन्य प्रानुपूर्वी कर्म की व्याख्या भी जान लेनी।
_ [१४] विहायोगति-विहायोगति शब्द में दो शब्द हैं-विहायस् और गति । विहायस अर्थात् आकाश । आकाश में होती हुई गति विहायोगति कही जाती है। विहायोगति शब्द का यह शब्दार्थ है। इसका भावार्थ गति करनी अर्थात् गमन करना यही है।।
जीवों की गति दो प्रकार की होती है। शुभगति तथा अशुभ गति । इससे विहायोगति नामकर्म के शुभविहायोगति और अशुभविहायोगति ये दो भेद होते हैं।
जिस कर्म के उदय से जीव-प्रात्मा शुभ (-प्रशस्त) गति करता है, वह शुभविहायोगति नामकर्म कहा जाता है। जैसे-गजगति तथा हंसगति इत्यादि गति शुभ होती है तथा जिस कर्म के उदय से जीव अशुभ (-अप्रशस्त) गति करता है, वह प्रशभविहायोगति नामकर्म कहा जैसे-ऊँटगति तथा सियारगति इत्यादि गति अशुभ है इसलिए वह अशुभ विहायोगति नामकर्म में आती है।
शुभ और अशुभ विहायोगति अवान्तर भेद होने के कारण चौदह पिंड प्रकृति कही जाती हैं। * प्रश्न-यहाँ पर विहायोगति का भावार्थ तो गति करना यही है। इसलिए यहां
विहायस् शब्द लिखने में नहीं आये और जिस कर्म के उदय से शुभ गति हो वह शुभगतिनामकर्म तथा अशुभगति हो वह अशुभगतिनामकर्म, इस तरह अर्थ करने में किसी भी प्रकार की बाधा आती नहीं है। इससे यहां विहायस् शब्द का निर्देश करने की आवश्यकता नहीं होने पर भी, उसका उल्लेख-निर्देश
क्यों करने में आया है ? उत्तर-चौदह पिण्डप्रकृतियों में गतिनामकर्म भी है। जो यहाँ विहायस् शब्द लिखने में नहीं पाये तो गतिनामकर्म दो हो जाय। इसलिए पिण्डप्रकृतियों में गतिनामकर्म को पृथक् बताने के लिए गति के साथ विहायस शब्द का उल्लेख करने में पाया है। उसका अर्थ तो, जिस कर्म के उदय से जोव-यात्मा शुभ गति कर सके वह शुभविहायोगति तथा अशुभ गति कर सके वह अशुभविहायोगति यही है। * प्रश्न-जो पिंडप्रकृति में आये हुए गतिनामकर्म से इस चलने रूप गतिनामकर्म को
अलग रखने के लिए विहायस् शब्द जोड़ने में आया है तो अन्य-दूसरे शब्द जोड़ते, यह विहायस् शब्द ही क्यों जोड़ा?