Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
* अष्टम- अनर्थदण्डविरतिव्रतस्यातिचारा:
[ ७/२७
5 मूलसूत्रम्
कन्दर्प- कौत्कुच्य-मौखर्या-समीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ।। ७-२७ ॥
* सुबोधिका टीका *
अनर्थदण्डविरतिव्रतस्य पञ्चातिचाराः । कन्दर्पः कौत्कुच्यं मौखर्यमसमीक्ष्याधिकरणमुपभोगाधिकत्वमित्येते पञ्चानर्थदण्ड - विरतिव्रतस्य प्रतिचारा भवन्ति । तत्र कन्दर्पो नाम रागसंयुक्तोऽसभ्यो वाक्प्रयोगो हास्यं च । कौत्कुच्यं नाम एतदेवोभयं दुष्टकायप्रचारसंयुक्तम् । मौखर्यमसंबद्ध बहुप्रलापित्वम् । समीक्ष्याधिकरणं लोकप्रतीतम् । उपभोगाधिकत्वम् चेति ।
अविचार्य प्रयोजनाधिकक्रिया श्रसमीक्ष्याधिकरणं भवति । त्रिविधश्चैतद् मनसावाचा-कायेन च । उपभोगवस्तुप्रमाणाधिकं संग्रहं उपभोगाधिकत्वातिचारः ।। ७-२७ ।।
* सूत्रार्थ - कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोग का अधिकत्व ये पाँच अनर्थदण्डविरति व्रत के प्रतिचार हैं ।। ७-२७ ।।
विवेचनामृत
(१) कन्दर्प, (२) कौत्कुच्य, (३) मौखर्य, (४) असमीक्ष्याधिकरण तथा (५) उपभोगाधिकत्व ये पाँच प्रतिचार श्रनर्थदण्डविरमण व्रत के हैं । क्रमशः इनका संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे है -
(१) कन्दर्प - रागवश होकर असभ्य भाषण या परिहासादि करना । श्रर्थात् - रागयुक्त हास्यपूर्वक कामोत्तेजक असभ्य वाक्य वचन बोलना । जिससे मोह ( तद् - तद् इन्द्रिय विषयोपभोग की अभिलाषा - इच्छा) प्रगट होवे ऐसा वाक्य वचन नहीं बोलना चाहिए। श्रावक-श्राविका को पेट भरके खटखटाट जोर से स्मित करना अर्थात् हँसना भी उचित नहीं ।
(२) कौत्कुच्य (कोकुच्य ) - भांडादि के समान कुचेष्टायें करनी । अर्थात् - राग सहित, हास्यपूर्वक कामोत्तेजक असभ्य वाक्य वचन बोलने के साथ असभ्य कायिक चेष्टा करनी ।
कन्दर्प में हास्य तथा वाक्य वचन के प्रयोग होते हैं। जबकि कौत्कुच्य में हास्य और वाक्य-वचन के प्रयोग के साथ कायिक प्रयोग भी होते हैं । इस कन्दर्प में कायिक चेष्टा हो तब वह कौत्कुच्य कहा जाता है ।
(३) मौखर्य - निर्लज्जपने या बिना सम्बन्ध के प्रति विलाप करना । प्रर्थात् — प्रसम्बद्ध बहुत बोलना, यह मौखर्य है ।