Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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८८ ] अष्टमोऽध्यायः
[ १५ * दर्शनावरणस्य प्रकृतीनां भेदाः * 卐 मूलसूत्रम्चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा-निद्रानिद्रा-प्रचला-प्रचलाप्रचला
स्त्यानगृद्धिवेदनीयानि च ॥ ८-८ ॥
* सुबोधिका टीका * चक्षुर्दर्शनावरणं, प्रचक्षुर्दर्शनावरणं, अवधिदर्शनावरणं, केवलदर्शनावरणं, निद्रावेदनीयम्, निद्रानिद्रावेदनीयम्, प्रचलावेदनीयं, प्रचलाप्रचलावेदनीयम्, स्त्यानगृद्धिवेदनोयम् चेति नवभेदाः दर्शनावरणीयस्य सन्ति ।। ८-८ ।।
* सूत्रार्थ-चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, तथा केवलदर्शनावरण, ये चार प्रावरण और निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, एवं स्त्यानगृद्धि इन पाँचों का वेदन; इस प्रकार दर्शनावरण कर्म के नौ भेद हैं ।। ८-८ ॥
9 विवेचनामृत चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल ये चार दर्शन के चार आवरण हैं। तथा निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला एवं स्त्यानगृद्धि ये पाँच मिलकर दर्शनावरण कर्म प्रकृति के नौ भेद होते हैं ।
उनका स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि-चक्षु प्रादि के सामान्य अवबोध (दर्शन) को आवृत करने का जिसमें स्वभाव हो, उसको दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं ।
उसके ही नौ भेद हैं
(१) चक्षुदर्शनावरण, (२) अचक्षुदर्शनावरण, (३) अवधिदर्शनावरण, (४) केवलदर्शनावरण, इनके दर्शन को सामान्य उपयोग भी कहते हैं। तथा पाँच प्रकार की निद्रा भी दर्शनावरणीय है ।
(१) सुखपूर्वक निद्रा आ जाए और जाग उठे उसको निद्रा' कहते हैं । (२) सुख से निद्रा पा जाए और मुश्किल से ही जागे उसे 'निद्रानिद्रा' कहते हैं । (३) बैठे और खड़े नींद ले, उसको 'प्रचला' कहते हैं । (४) चलते हुए नींद ले उसको 'प्रचलाप्रचला' कहते हैं ।
(५) जागृत अवस्था में विचारा हुआ कार्य निद्रावस्था में करे, उसको 'स्त्यानगृद्धि निद्रा' कहते हैं।