Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ हिन्दी पद्यानुवाद प्रानयन प्रयोग प्रेष्य प्रयोग, दोष को जानना। शब्दानुपात रूपानुपात, पुद्गल • प्रक्षेप मानना ।। देशावगासिकव्रत के, अतिचार रूपे ये कहे। तथावंचक दोषरूपे, शास्त्र में प्रख्यात ये ॥ १८ ॥ कन्दर्प पहला दोष गिनिये, सूत्र में क्रमशः कहा। चेष्टा नामक दोष दूसरा, वाचाल तीसरा दोष हा ।। चौथा असमीक्ष्याधिकरण, उपभोगाधिकत्व पांचवां । अनर्थदंड-विरमण के ये, दोष पांचों जानना ।। १६ ।। मन वचन और काय के ये, अशुभ व्यापार जो हुए । सामायिक के भाव में भी, प्रादर भाव नहीं रहे ॥ विस्मरण से ध्यान चूके, दोष बत्तीस हैं हुए। सामायिक के दोष तजते, होता संवर भाव ए ॥ २० ।। उत्सर्ग वस्तु ग्रहण स्थापन, और संथारा की ए। दृष्टि की प्रतिलेखना, प्रमार्जना भी सूत्रे ए॥ ये तीन दोष यों सेवे तो, पोसह आदर नहीं। स्मृतिभ्रंश है दोष पंचम, पोसह समुचित नहीं ।। २१ ।। सचित्त हो पाहार यदि, सचित्तबद्ध सचित्तमिश्रता । अभिषव तथा दुष्पक्व भी, ये दोष है माहारता ।। भोग मौर परिभोग वस्तु, उल्लंघता परिमाण में । गुणधरा वो दोष सेवे, व्रत सम्बन्धी स्थान में ॥ २२ ॥ सचित्त वस्तु ग्राह्यता कर, उपरि वस्तु सेवते । प्रचित्त वस्तु ग्राह्य करके, ऊपर सचित्त सेवते ॥ व्यपदेश और मत्सरता, समय की उल्लंघना । प्रतिथि का संविभाग साधे, दोष पंचक लंघना ॥ ७-२३ ।।