Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ हिन्दी पद्यानुवाद
संसार के सब जीवों में, है भावना मैत्री भली । गुण से अधिकां जीव निरखी, उल्लास भाव प्रमोद की ।। संसार के दुःखतप्त जीवों में, करो करुणा सभी। अपात्र जड़ प्रज्ञानियों में, मध्यस्थता होवे तभी ।। ३ ।। संसार की प्रकृति जानो, स्वीकार लो संवेगता । क्षयवन्त सारे जगत को, जानो करो वैराग्यता ।। संवेग और वैराग्य श्रेष्ठ, जगत्काय स्वभाव का । स्वरूप विचारी प्रात्मध्याने, रमता मुनि एकमना ।। ४ ।।
पंचवतों का वर्णन 卐 मूलसूत्रम्
प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा ॥ ७-८ ॥ असदभिधानमनतम् ॥ ७-६ ॥ प्रवत्तादानं स्तेयम् ॥ ७-१० ॥ मैथुनमबह्म ॥७-११॥ मूर्छा परिग्रहः ॥ ७-१२ ॥ निःशल्यो व्रती ॥ ७-१३ ॥ प्रगार्यनगारश्च ॥ ७-१४ ॥
अणुव्रतोऽगारी ॥ ७-१५ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
पांचों प्रमादों से वशी हो, जीव प्राण वियोगता। हिंसा का लक्षण कहा, तत्त्वार्थसूत्रे समझना ॥ प्रमादवश अनृत वचन है, दोष दूसरा प्रसत्य । नहीं दी हुई वस्तु लेनी, चौर्य निश्चय जान सत्य ।। ५ ॥ प्रब्रह्म ही मैथुन कहा है, साधन मूर्च्छना ही परिग्रह । प्राक्रान्त जो इन पाँच से हो, प्रविरति भव-भव फिरे ।। जो पाँच से हो विरत प्राणी, निःशल्यता भावे भजी । विरति पणे रमते नित्य जीव, प्रविरति को संत्यजी ।। ६ ॥