Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
सप्तमोऽध्यायः
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जो जीव विरतिवन्त है, दो भेद उसके ही कहे । अगारी है प्रथम उसका, द्वितीय अनगारी कहे ॥ प्रगारी अणुव्रतव्रती, गुणव्रती शिक्षाव्रती। इन द्वादशव्रतों का संग्रही, करता संयम में रती ।। ७ ।।
* गुणवत, शिक्षाव्रत का वर्णन तथा सम्यक्त्व के प्रतिचार * 卐 मूलसूत्रम्
दिग्देशानर्थदण्डविरति-सामायिक-पौषधोपवासोपभोगपरिभोगा-तिथिसंविभागवतसंपन्नश्च ॥ ७-१६ ॥ मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥ ७-१७ ॥ शंकाकांक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः ॥७-१८ ॥
व्रतशीलेषु पंच-पंच यथाक्रमम् ॥ ७-१६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
दिदिशापरिमाण व्रत को, देशप्रवगासिक कहे । अनर्थ विरति व्रतसामायिक, पोसहव्रत ही कहे ।। उपभोग और परिभोग में, परिमाण ही मन धरूं । अतिथि संविभाग धर के, उत्तम संयम को प्रादरूँ ॥८॥
माराधना की मरण अन्ते, सेवना शास्त्रे कही। सुणी धारी विषय वारी, हृदयमहीं ए सद्दही । समकित मूले द्वादश व्रत के, अतिचार वर्णन करूं। मन से धरते दोष तजते, श्रावक धर्म ही वहूँ ॥ ६ ॥ समकित गुण के अतिचार, पांच हैं सुनलो व्रती। शंका कांक्षा वितिगिच्छा, प्रशंसा संस्तव प्रति । व्रत शील के ये अतिचार, पंच-पंच ज वर्णना। प्रथमादि व्रत के प्रतिचारो, तजी गुण को सेवना ॥ १० ॥