Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ७२८
* सूत्रार्थ - कायदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, मनः दुष्प्रणिधान, अनादर तथा स्मृत्यनुपस्थापन समयादि का भूल जाना ये सामायिक व्रत के पाँच प्रतिचार हैं ।। ७-२८ ।।
'मन, वचन और काया' इन तीन पाँच सामायिक व्रत के प्रतिचार हैं दुष्प्रणिधान, (३) काययोग दुष्प्रणिधान, सामायिक व्रत के प्रतिचार कहे जाते हैं ।
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विवेचनामृत 5
योगों के दुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृत्यनुपस्थापन, ये अर्थात् - ( १ ) मनोयोगदुष्प्रणिधान, (२) वचनयोग(४) अनादर और (५) स्मृत्यनुपस्थापन ये पाँच इनका क्रमशः संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे है
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[१] मनोयोगदुष्प्रणिधान - सावद्य या उपयोग रहित मनोव्यापार । अर्थात् निरर्थक पाप के विचार करना, यह मनोयोग दुष्प्रणिधान प्रतिचार है ।
* इस प्रतिचार से बचने के लिए सामायिक में मन के दस दोषों का त्याग करना चाहिए । वे दस दोष निम्नलिखित हैं
( १ ) श्रविवेक - सामायिक के वास्तविक स्वरूप को नहीं जानने से ऐसी क्रिया से क्या फल मिले ? इत्यादि सामायिक फल सम्बन्धी कुविकल्प करना ।
(२) यशोवाञ्छा - श्रन्य-दूसरे लोग मेरी प्रशंसा करेंगे, ऐसी इच्छा से सामायिक करना ।
(३) धनवाञ्छा - धन प्राप्ति की इच्छा से सामायिक करना ।
(४) गर्व (अभिमान) - सामायिक करके घर्मी तरीके गर्व यानी अभिमान करना ।
(५) भय - जो में सामायिक नहीं करूँ तो अमुक तरफ से उपालम्भ यानी ठपका मिलेगा, कोई निन्दा करेगा तथा मैं सबके सामने हल्का ठहरूंगा; इत्यादि भय से सामायिक करना ।
(६) निदान - सामायिक के फल रूप में इसलोक तथा परलोक के सुखों की अभिलाषाइच्छा रखनी ।
(७) संशय - सामायिक का फल मिलेगा कि नहीं ? विषय में संशय रखना ।
(5) कषाय - क्रोध के आवेश में आकर सामायिक करना, अथवा सामायिक में क्रोध
करना ।
इस तरह सामायिक के फल के
( ६ ) अविनय - विनय रहित सामायिक करना ।
(१०) बहुमान - बहुमान बिना यानी उत्साह बिना सामायिक करना।
सदोष मनोयोग दुष्प्रणिधान के हैं ।