Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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[ ७।३४
मित्येवमादिः । द्रव्यविशेषोऽन्नादीनामेव सारजातिगुणोत्कर्षं योगः । दातृविशेषः प्रतिग्रहतिर्यनसूया त्यागेऽविषादः परिभाविता दित्सतो ददतो दत्तवतश्च प्रीतियोगः । पात्राय दानरीति विधिः कथ्यते । नवधा भक्त्यादिभिः यद् दीयते । तस्य सम भावेन पालनमसम्भवम् ।
श्रतः कुत्र विधिवैशिष्ट्यं भवति । कुत्र द्रव्य वैशिष्ट्यं भवति पात्र वैशिष्टयं भवति । मात्रविशेषः सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्र तपः सम्पन्नता इति ।। ७-३४ ।।
* सूत्रार्थ - विधि की विशेषता, द्रव्य की विशेषता, दाता की विशेषता तथा पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता हुआ करती है ।
अर्थात् द्रव्य दान और पात्र इनकी विशेषता से दान की विशेषता होती है ।। ७-३४ ।।
विवेचनामृत 5
आत्म-जीवन के सद्गुणों में सबसे प्रथम - पहला और अन्य सद्गुणों के विकास का आधार तथा पारमार्थिक दृष्टि में आदरणीय दान है ।
न्यायोपार्जित वस्तु अन्य-दूसरे को अर्पण करना अर्थात् देना ही दान है। इससे स्व और पर का उपकार अवश्य ही होना चाहिए । अर्पण करने वाले अर्थात् दान देने वाले को चीज वस्तु पर से ममत्व भाव कम करके सन्तोष तथा समभाव प्राप्त होता है । स्वीकार करने वाले का अभिप्राय केवल जीवनयात्रा का निर्वाह करके संयम चारित्र के सद्गुणों की अभिवृद्धि करना है । समस्त प्रकार का दान, दान रूप से एक ही है तो भी उसके फल में तारतम्य भाव रहा हुआ है और वह तारतम्य भाव दान की विशेषता पर अवलम्बित है । सूत्रकार ने उसके मुख्य चार अंग बताये हैं । विधि, द्रव्य, दाता और पात्र इनकी विशेषता से दान की विशेषता होती है। इनका क्रमश: वर्णन नीचे प्रमाणे है -
(१) विधि विशेष - देश, काल, श्रद्धा के उचितानुचित स्वरूप को जोह कर अर्थात् देखकर लेने वाले के सिद्धान्त को अबाधित हो ऐसी कल्पनीय चीज वस्तु को अर्पण करना, वह विधि विशेष है ।
अर्थात् – देश, काल, श्रद्धा, सत्कार और क्रमपूर्वक कल्पनीय चीज वस्तु देनी इत्यादि fafa कही जाती है ।
१. स्वयं जाते ही अपने हाथ से सानंद सहर्षं दान करना, यह भी विधि है । इत्यादि शब्द से इस विधि का निर्देश किया है ।