Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
विरुद्धे हि राज्ये प्रथममेव स्तेययुक्तमादानं भवति । हीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहारः । कूटतुला कूटमानञ्च वञ्चनादि युक्तः क्रयो विक्रयो वृद्धिप्रयोगश्च । प्रतिरूपकव्यवहारो नाम सुवर्ण-रूप्यादीनां द्रव्याणां प्रतिरूपकक्रियाव्याजीकरणानि चेत्येते पञ्चास्तेयव्रतस्यातिचारा भवन्ति । एतेषु कस्यापि प्रतिचारस्य कृते सति अचौर्यव्रतस्यांशस्य भंगः भवति ।। ७- २२ ।।
[ ७।२२
* सूत्रार्थ - स्तेनप्रयोग चोरी करना, तदाहृतादान चोरी की वस्तु ग्रहण करना, राज्यविरुद्ध कार्य करना, तोल-माप न्यूनाधिक रखना, नकली चीज वस्तु को असली बताना इत्यादि ये पाँच अस्तेय अणुव्रत के प्रतिचार हैं ।। ७-२२ ।
विवेचनामृत 5
(१) स्तेनप्रयोग, (२) तदाहृतादान, (३) विरुद्ध राज्यातिक्रम, (४) हीनाधिकमानोन्मान श्रौर ( ५ ) प्रतिरूपक व्यवहार । ये पाँच अस्तेय (स्थूल प्रदत्तादान विरमरण) व्रत के अतिचार हैं । इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(१) स्तेनप्रयोग - स्तेन यानी चोर, प्रयोग यानी प्रेरणा- उत्तेजना ।
'चोरों से व्यवहार', चोर को चोरी करने में उत्तेजन देना, यह स्तेनप्रयोग है। चोर के साथ लेन-देन का व्यवहार रखना, चोरी करने के बाद इसकी प्रशंसा करनी, चोरी के लिए प्रयत्न करने वाले को उपकरण देना, रहने के लिए आश्रय देना, तथा अन्न-पानी देना इत्यादि रीति से चोर को चोरी करने के लिए उत्तेजन देना, यह स्तेनप्रयोग प्रतिचार कहा जाता है. ।
(२) तदाहृतादान - 'चोरी द्वारा लाई हुई चीज वस्तु ग्रहण करनी' अल्प अथवा ठीक मूल्य से लेनी । अर्थात् - चोर द्वारा चोरी करके लाई हुई चीज वस्तु मुफ्त अथवा कम मूल्य में लेनी; यह तदाहृतादान प्रतिचार कहा जाता है ।
* स्तेनप्रयोग और तदाहृतादान में स्वयं पोते चोरी करता नहीं है, परन्तु चोरी में उत्तेजन देने से परमार्थ दृष्टि से आंशिक व्रतभंग होने से यह प्रतिचार है ।
इसके सम्बन्ध में संस्कृत भाषा के एक श्लोक में कहा हुआ है कि
"चौरश्चौरापको मन्त्री, भेदज्ञः काणकक्रयी ।
अन्नदः स्थानदश्चेति, चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥ "
अर्थ - चोरी करने वाला, चोरी कराने वाला, चोरी के लिए सलाह देने वाला. चोरी के भेद को जानने वाला, चोरी के माल की खरीद करने वाला, चोर को अन्न-पानी देने वाला, तथा चोर को प्राश्रय स्थान देने वाला; इस तरह चोर के सात प्रकार हैं ।
(३) विरुद्ध राज्यातिक्रम- राजा की प्राज्ञा का उल्लंघन करना। राज्य का निषेध होते हुए भी गुप्त - छिपी रीति से अन्य राज्य में प्रवेश करना, दान चोरी करनी, तथा जकात की भी चोरी करनी इत्यादि राज्यविरुद्ध कार्यों का समावेश इसमें होता है ।