Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
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* सूत्रार्थ - ऊर्ध्व (ऊँचे-ऊपर), अधो (नीचे) और तिर्यग् (तिरछी ) दिशानों में परिमारण से अधिक जाना, रागवश क्षेत्र की वृद्धि करना तथा किये हुए परिमाण को भूल जाना । ये पाँच दिग्वत के प्रतिचार हैं ।। ७-२५ ।
७।२५
5 विवेचनामृत 5
व्रतसंज्ञक प्रहिंसादिक पाँच नियमों व्रतों के प्रतिचारों का वर्णन करके अब शीलसंज्ञक दिगादिव्रतों के प्रतिचार क्रमश: कहते हैं - ऊर्ध्व, अधो और तिर्यग् इन तीन दिशाओं के परिमाण में व्यतिक्रम तथा क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तर्धान ये पाँच दिग्विरति व्रत के प्रतिचार हैं । जिनका संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे है
(१) ऊर्ध्व व्यतिक्रम - ऊर्ध्व - वृक्ष तथा पर्वतादि पर चढ़ने के लिए ऊँचाई के परिमाण की मर्यादा विस्मृति या लाभादि के कारण उसका उल्लंघन करना, यह ऊर्ध्व व्यतिक्रम है । ऊर्ध्व यानी ऊँची-ऊपर की दिशा में पर्वत-पहाड़ादिक ऊपर भूल से, घारित परिमाण से जाना, यह ऊर्ध्व व्यतिक्रम प्रतिचार कहा जाता है ।
अर्थात् - अधिक दूर
(२) श्रधो व्यतिक्रम - प्रधो यानी नीचे की दिशा में कूप इत्यादि में भूल से धारित प्रमाण से अधिक दूर जाना, यह अधो व्यतिक्रम है । अर्थात् नीची दिशा की मर्यादा का उल्लंघन करना यह अधो व्यतिक्रम प्रतिचार कहा जाता है ।
(३) तिर्यग् व्यतिक्रम - तिर्यग् यानी तिछ । पूर्वादिक आठ दिशाओं में धारे हुए प्रमाण से भूल से अधिक दूर जाना, यह तिर्यग् व्यतिक्रम है । अर्थात् - तिरछी दिशा की मर्यादा का उल्लंघन करना, यह तिर्यग् व्यतिक्रम प्रतिचार कहा जाता है ।
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(४) क्षेत्रवृद्धि - उत्तर-पूर्वादिक चारों दिशाओं की मर्यादा में वृद्धि करना, यह क्षेत्रवृद्धि है । अर्थात् - एक दिशा का परिमाण अन्य दूसरी दिशा में डालकर दूसरी दिशा के परिमाण में अभिवृद्धि करनी । जैसे— पूर्व और पश्चिम दिशा में १००-१०० मील का परिमाण करने के बाद जब पूर्व दिशा में १५० मील जाने की जरूरत पड़ी तब पश्चिम दिशा में से ५० मील लेकर पूर्व दिशा में मिला करके अपना काम कर लिया। इससे नियम भंग होते हुए भी कुल संख्या कायम रहने से यह अपेक्षा से प्रतिचार है । यह क्षेत्रवृद्धि परिमाण प्रतिचार कहा जाता है ।
रहना । अर्थात् - लिये हुए
दिशा के प्रमाण को भूल
जैसे कि- मैंने १०० मील मील घारे होंगे तो आगे
।
(५) स्मृत्यन्तर्धान – मर्यादा की हुई सीमा की स्मृति न नियम को, दिशा के परिमारण को भूल जाना बराबर याद नहीं रखना जाने के बाद घरे हुए प्रमाण से दूर नहीं जाते हुए प्रतिचार लगता है । धारे हैं अथवा ५० मील धारे हैं ?
ऐसी शंका हो जाने से कदाचित् ५०