Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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७।२३
विवेचनामृतम (१) परविवाहकरण, (२) इत्वरपरिगृहीतागमन, (३) अपरिगृहीतागमन, (४) अनंगक्रीड़ा, और (५) तीवकामाभिनिवेश । ये पांच ब्रह्मचर्य (स्थूल मैथुनविरमण) व्रत के अतिचार हैं।
इन पाँचों का संक्षिप्त वर्णन क्रमश: इस प्रकार है
(१) परविवाहकरण-अन्य-दूसरे की शादी-विवाह कन्यादानादि करना। अर्थात् कन्यादान के फल की इच्छा के स्नेहादिक से आगे पड़ता भाग लेकर के अन्य-दूसरे की सन्तान अर्थात् पुत्र-पुत्रियों के शादी-विवाह कराना। यहां परदारा के साथ मैथुन सेवन नहीं करना और नहीं कराना इस प्रकार का नियम है ।
शादी-विवाह कराने में परमार्थ से मैथुन सेवन कराया कहा जाता है। इसलिए परमार्थ से यह व्रतभंग है। परन्तु मैं शादी-विवाह कराता हूँ, लेकिन मैथुन सेवन नहीं कराता ऐसे मानसिक परिणाम की दृष्टि से स्वयं व्रतसापेक्ष है।
___ इसलिए आम आंशिक (अपेक्षा से) व्रतभंग और आंशिक व्रतपालन होने से यह अतिचार है।
जिस तरह पर की सन्तानों के शादीविवाह से अतिचार लगते हैं, उसी तरह निज सन्तानों के शादी-विवाह से भी अतिचार लगते हैं ।
किन्तु जो अपने सन्तानों के शादी-विवाह नहीं करे तो अपनी सन्ताने स्वेच्छाचारी बन जाती हैं। इस तरह ऐसा हो जाने पर धर्म-शासन की हीलना होती है। इसलिए अपनी सन्तानों के शादी-विवाह का निर्देश यहाँ नहीं किया। किन्तु अपनी सन्तानों के शादी-विवाह भी अन्य अपने ज्येष्ठ-बड़े पुत्र अथवा भाई इत्यादि सम्भाल सके तब तो स्वयं-पोते उस कार्य में अंशमात्र भी मत्थामस्तक मारना नहीं चाहिए।
(२) इत्वर परिगृहीतागमन-इत्वर यानी अल्प समय, परगृहीता यानी दूसरे से स्वीकार की हुई। व्यभिचारिणी या अन्य-दूसरे की विवाहिता से प्रसंग करना। अर्थात्-जब अन्य-दूसरे किसी ने अल्प समय के लिए वेश्या को स्वीकार किया हो, तब उस समय में वेश्यागमन करना। जितने समय पर्यंत अन्य-दूसरे व्यक्ति ने वेश्या का स्वीकार किया हो, उसी समय में वेश्यागमन करना, यह अतिचार है।
कारण कि, इतने समय तक अन्य-दूसरे द्वार पैसा-पगार बाँध करके अपनी स्त्री रूपे रखी होने से वह परदारा है। इसलिए व्रतभंग होने से ही व्रतभंग किया जाता है। ऐसा होते हुए भी मैं परस्त्री का सेवन करता नहीं हूँ, परन्तु वेश्या का सेवन करता हूँ। इस तरह मानसिक परिणाम की दृष्टि से व्रतभंग नहीं होने से इत्वरपरिगृहीतागमन अतिचार है ।
अथवा स्वयं-पोते पैसा देकर के अल्प समय तक अपनी स्त्री करके वेश्यागमन जो करना वह इत्वरपरिगृहीतागमन कहा जाता है। यहाँ मैथुन सेवन के लिए भाड़ा-पैसा देकर के अल्प समय