Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ७।२४
इस तरह इन दोनों में अपेक्षा से व्रत का अभंग और अपेक्षा से भंग होने से दोनों ही अतिचार रूप हैं ।। (७-२३)
* पंचम अपरिग्रहव्रतस्य पंचातिचाराः
5 मूलसूत्रम् -
क्षेत्रवास्तु- हिरण्यसुवर्ण - धनधान्य- दासीदासकुप्यप्रमारणातिक्रमाः ॥ ७-२४ ॥
* सुबोधिका टीका *
क्षेत्रभूमिवास्तुगृहाणां प्रमाणातिक्रमः हेमसुवर्ण - प्रमाणातिक्रमः, धनधान्यप्रमाणातिक्रमः, दासीदासप्रमाणातिक्रमः, कुप्यप्रमाणातिक्रमः इत्येते पञ्चेच्छापरिमाणव्रतस्यातिचारा भवन्ति । एते इच्छापरिमाण-परिग्रह परिमारण अपरिग्रहव्रतानां प्रतिचाराः । एवमेव शेषाः चत्वारोऽतिचाराः अपि । एतेषु पञ्चषु विषयेषु एव व्रतस्य भंग भंगवृत्तिः प्राप्यते श्रतः प्रतिचारा इमे ।। ७-२४ ।।
* सूत्रार्थ - क्षेत्र (खेत) या वास्तु (घर), हिरण्य सुवर्ण, धन-धान्य, दासी, दास और कुप्य - बर्तन वस्त्र इत्यादि इन पाँचों का नियम से अधिक संग्रह करना । परिग्रह परिमारण व्रत के प्रतिचार हैं ।। ७-२४ ।।
15 विवेचनामृत 5
(१) क्षेत्र - वास्तु, (२) हिरण्य- सुवर्ण, (३) धन-धान्य, (४) दासी - दास तथा कुप्य । इन पाँचों के परिमाण में अतिक्रम वृद्धि करने से ये पांच प्रतिचार स्थूल परिग्रह विरमण व्रत के हैं । इन पाँचों प्रतिचारों का संक्षिप्त वर्णन क्रमशः नीचे प्रमाणे है(१) क्षेत्र - वास्तुप्रमारणातिक्रम - खेती करने इत्यादि) भूमि, वह वास्तु । परिग्रह के प्रमाण में वास्तु को, समस्त प्रकार की भूमि जमीन को स्वीकार करना । वास्तु गृह घरादि के परिमाण से अधिक संग्रह करना । प्रतिचार है ।
लायक भूमि, वह क्षेत्र । रहने लायक (घर घारी हुई चीज वस्तु के प्रमारण से अधिक क्षेत्रअर्थात् - क्षेत्र, जमीन खेतादिक
यह
क्षेत्र - वास्तु प्रमाणातिक्रम
(२) हिरण्य - सुवर्णातिक्रम - हिरण्य यानी चाँदी । सुवर्ण यानी सोना । यहाँ चाँदीसोना के उपलक्षण में रत्न इत्यादिक उच्च प्रकार की घातुत्रों, इन्द्रमरिण इत्यादि कीमती पत्थर की जात तथा रोकड़ नारणां इत्यादि जान लेना ।