Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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४४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ १६ फल-इस अनर्थदण्डविरति से अनेक प्रकार के पापों से बच जाते हैं, तथा स्व जीवन संस्कारित बनता है। तामस और राजस वृत्ति दूर होती है, एवं सात्त्विक वृत्ति प्रगटती है ।
(९) सामायिक (प्रथम शिक्षावत) सम यानी शान्ति, आय यानी लाभ। जिससे समता गुण-शान्ति प्राप्त हो, वह सामायिक है । समस्त सावद्ययोगों का अर्थात् पाप व्यापारों का त्याग किये बिना शान्ति मिलती नहीं है, इसलिए इस व्रत में सर्व सावद्ययोगों का त्याग करने में आता है।
अमुक काल पर्यन्त (धारणा प्रमाणे, जैसे कि-जहाँ तक मैं साधु महाराज पासे रहूँ वहाँ तक आदि) द्विविध-त्रिविध से (मन, वचन और काया द्वारा त्रिविध से, पाप नहीं किया और नहीं कराया ए द्विविध से) समस्त सावद्ययोगों का त्याग, वह सामायिक कहा जाता है।
वर्तमान काल में इस व्रत में दो घड़ी (अड़तालीस मिनट पर्यन्त) द्विविध-त्रिविधे सर्व सावद्ययोगों का त्याग, उसे सामायिक जानना।
इस व्रत का स्वीकार करने वाले को हमेशा कम से कम एक सामायिक करना, ऐसा नियम अवश्य लेना चाहिए ।
अहर्निश नहीं हो सके तो वर्ष में अमुक सामायिक करना, इस तरह भी नियम करना चाहिए।
फल-इस व्रत से मुक्ति-मोक्ष सुख की बानगी रूप शान्ति-समता का अनुभव होता है । तथा मोक्षमार्ग के दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र रूप त्रिवेणी संगम की आराधना होती है। संसार में गृहस्थ होते हुए भी मुनि-साधु जैसा जीवन हो जाता है। अनेक प्रकार के पूर्वसंचित पापों का विनाश होता है।
(१०) पौषधोपवास (शिक्षावत दूसरा)-पौषध यानी पर्वतिथि/अष्टमी आदि पर्वतिथि में उपवास करना, वह पौषधोपवास है ।
इसके चार भेद नीचे प्रमाणे हैं
(१) आहार, (२) शरीरसत्कार,' (३) अब्रह्म, तथा (४) सावध कर्म । इन चारों का त्याग वह पौषधोपवास वा पौषध व्रत कहा जाता है ।
यह व्रत केवल दिन-दिवस पूरता, केवल रात्रि पूरता, या केवल दिन-रात्रिपूरता ही लेने में आता है। आहार त्याग, तीन प्रकार का त्याग सर्वथा करने में आता है।
त्याग सर्वथा या शक्ति के अभाव में देश से करने में आता है।
स्नान करना, तेल चोलना, सुगन्धित पदार्थों का विलेपन करना, केश-वाल अोलना इत्यादिक देह-शरीर की विभूषा करनी, वह शरीर सत्कार है।