Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ॥२०
* प्रथम-अहिंसावतस्य पंचातिचाराः * 卐 मूलसूत्रम्बन्ध-वध-विच्छेदा-ऽतिभारारोपणा-ऽन्नपाननिरोधाः ॥ ७-२० ॥
* सुबोधिका टीका * अभिमतस्थानेषु यस्य निमित्तेन यत्र गमनं न शक्यते तत्र बन्धः जायते। त्रसस्थावराणां जीवानां बन्धवधौ त्वक् छेदः काष्ठादीनां पुरुष-हस्त्यश्वगोमहिषादीनां चातिभारारोपणं तेषामेव चान्नपाननिरोधः अहिंसाव्रतस्यातिचारा भवन्ति । एते पञ्चाहिंसाणुव्रतस्यातिचाराः कथिताः। अस्य कारणं विधीयमानानां एतेषामहिंसाणुव्रतस्य भंग: सर्वथा नैव भवति । क्रोधादि-कषायवशीभूतोऽपि कुर्वाणोऽपि एतानि कार्याणि व्रतरक्षां प्रति सावधानो भवति । तथान्तरङ्ग-बाह्यक्रियासु अपि सावधानो भवति ।। ७-२० ॥
* सूत्रार्थ-त्रस और स्थावर जीवों का बन्ध तथा वध करना। त्वचादि का छेदन, प्रतिभार लादना एवं अन्न-पान का निरोध कर देना। ये अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार हैं ।। ७-२० ॥
+ विवेचनामृत ॥ (१) त्रस-स्थावर जीवों का वध या (२) बन्धन, (३) काष्ठादि से छेदन, (४) अथवा जीवों पर अतिभार लादना (५) एवं उनके आहार-पानी का निषेध करना। ये पांच अतिचार अहिंसाव्रत के हैं।
अर्थात्-बन्ध, वध, छविच्छेद, अतिभारारोपण और अन्न-पान निरोध, ये पाँच अहिंसा (स्थूलप्राणातिपात विरमण) व्रत के अतिचार हैं ।
प्रथम अहिंसा व्रत के उक्त पाँच अतिचारों का क्रमशः संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(१) बन्ध-क्रोधपूर्वक बैल प्रादि पशुओं को तथा अविनीत निज पुत्रादिक को अत्यन्त मजबूती से बांधना वह बन्ध है।
इसलिए श्रावक-श्राविकानों को निष्कारण किसी भी प्राणी को बन्धन से बाँधना नहीं चाहिए । कदाचित् कारणवशात् पशुओं को या अविनीत स्वपुत्रादि को रज्जु आदि बन्धन से बांधने की जरूरत हो तो भी निर्दयता से प्रतिमजबूत तो नहीं हो बाँधना चाहिए ।
(२) वध-वध यानी मार। श्रावक-श्राविकानों को निष्कारण किसी को भी मारना नहीं चाहिए। श्रावक-श्राविकाओं को भीतपषद् बनना। जिससे अपना डाब रहने से कोई