Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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७।१८ ] सप्तमोऽध्यायः ।
[ ४६ उत्तर-केवलमात्र बाह्य दृष्टि से दु:ख या प्राणों का विनाश रूप हिंसा, हिंसा की कोटि में नहीं आती है। हिंसा का वास्तविक स्वरूप राग, द्वेष और मोह की वृत्ति पर अवलम्बित है।
संलेखना व्रत में प्राणों का विनाश है, तो भी वह राग-द्वेष तथा मोहजनित नहीं होने से हिंसा की कोटि में सम्मिलित नहीं होता, किन्तु उस संलेखनाव्रत का जन्म निर्मोह तथा वीतराग भाव की भावना से है। और व्रत की पूर्णता भी उक्त भावना की सिद्धि के लिए यत्न से होती है। इसलिए वह शुभ या शुद्ध ध्यान की श्रेणी में सम्मिलित होती है। * प्रश्न-कमलपूजा, भैरव जप, जलसमाधि इत्यादि अनेक प्रकार से होने वाली हिंसा ___को धर्म-धर्मरूप मानने वालों की प्रथा में तथा संलेखना की प्रथा में क्या अन्तर
भिन्नता है ? उत्तर–प्राणों के विनाश की स्थूल दृष्टि से तो दोनों समान हैं, किन्तु भावना की तरफ दृष्टिपात करने से तारतम्य भाव स्पष्टरूप से प्रगट हो जाता है। कहाँ आत्म-संशोधन की भावना और कहाँ भौतिक आशाओं के कारण या अन्य किसी प्रकार के प्रलोभन के आवेश से की हुई क्रियावृत्ति ? तत्त्वज्ञान की दृष्टि से दोनों उपासकों की भावनाएं पृथक्-भिन्न रूप होने से वह हिंसा तुलनात्मक नहीं हो सकती। जैन उपासना का ध्येय तात्त्विक दृष्टि से केवल आत्मशोधन ही है। किन्तु परार्पण या पर-प्रसन्नता की भोर किंचित् मात्र भी उनका दृष्टिपात नहीं है। किसी भी प्रकार का दुर्ध्यान उपस्थित नहीं हो, इस प्रकार की अवस्था में ही यह व्रत विधेयरूप अर्थात् ग्राह्यरूप माना गया है ।। ७-१७ ।।
* सम्यग्दर्शनस्यातिचाराः ॐ 卐 मूलसूत्रम्शङ्का-काङ्क्षा-विचिकित्सा-ऽन्यदृष्टिप्रशंसा-संस्तवाः
सम्यग्दृष्टेरतिचाराः ॥ ७-१८ ॥
* सुबोधिका टोका * अतिचारो व्यतिक्रमः स्खलनमित्यनर्थान्तरम् । शङ्का काङ्क्षा विचिकित्सा अन्यदृष्टिप्रशंसा संस्तवः इत्येते पञ्च सम्यग्दृष्टेरतीचाराः भवन्ति । अधिगतजीवाजीवादितत्त्वस्यापि भगवतः शासनं भावतोऽभिप्रपन्नस्यासंहार्यमतेः सम्यग्दृष्टेरहत्प्रोक्त षु अत्यन्त-सूक्ष्मेषु प्रतीन्द्रियेषु केवलागमग्राह्य षु यः सन्देहो भवति एवं स्यादेवं न स्यादिति निरन्तरमनसि शङ्का जायते सा शङ्का । ऐहलौकिकेषु पारलौकिकेषु विषयेषु माशंसा काङ्क्षा कथ्यते । सोऽतिचारः सम्यग्दृष्टेः कुतः ?
काङ्कितो ह्यविचारितगुणदोषः समयमतिक्रामति । विचिकित्सा नाम इदमपि अस्ति इदमपि प्रस्ति मतिसंशयः वा मतिविप्लवनम् । अन्यदृष्टिरित्यहच्छासनव्यतिरिक्तां दृष्टिमाह । सा द्विविधा। एका अभिगृहीता अन्याऽन्यभिगृहीता च ।