Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
है और जब असत् कार्यों की निवृत्ति होती है, तब स्वयमेव सत्कार्यों में प्रवृत्ति हो जाती है। किन्तु यहाँ पर तो स्पष्ट रीति से दोषों की निवृत्ति को ही व्रत माना है, तो भी उसमें सत्प्रवृत्ति का अंश तो आ ही जाता है। इससे मात्र निष्क्रियता नहीं जाननी चाहिए। * प्रश्न-रात्रिभोजन-विरमण भी प्रसिद्धरूप से व्रत के समान माना है तो उसको
वाचकप्रवरश्री सूत्रकार ने क्यों नहीं कहा ? . उत्तर-रात्रिभोजन-विरमण पृथक् रूप से मूलव्रत नहीं है, केवल मूलव्रत निष्पन्न एक आवश्यक व्रत है। प्रस्तुत सूत्रकार का ध्येय केवल मूलव्रत निरूपण विषयक है। इसलिए अवान्तर व्रत मूलव्रतों में अन्तनिहित हैं ।। ७-१ ॥
* व्रतानां भेदाः *
卐 मूलसूत्रम्
देश-सर्वतोऽणु-महती॥ ७-२॥
* सुबोधिका टीका * एकेन्द्रियाणां स्थावराणाञ्च सानामकारणहिंसात्यागः, अथवा सूक्ष्मभेदान् विहाय स्थूलभेदानां परित्यागोऽणुव्रतः । गृहस्थश्रावकायेदम्, एभ्यो हिंसादिभ्य एकदेशविरतिः अणुव्रतं सर्वतो विरतिर्महाव्रतमिति, गृहनिवृत्तं मुनीनां भवति ॥ ७-२ ।।
* सूत्रार्थ-उक्त हिंसादि पाँच पापों का एकदेश अर्थात् कुछ अंश से त्याग करना अणुव्रत और सर्वथा त्याग करना महाव्रत कहा जाता है ।। ७-२ ॥
ॐ विवेचनामृत अल्पांश विरति को अणुव्रत कहते हैं, और सर्वांश विरति को महाव्रत कहते हैं। अर्थात्हिंसादिक पापों से एकदेश से (आंशिक अथवा स्थल) निवृत्ति, वह अणुव्रत और सर्वथा (सूक्ष्म से) निवृत्ति वह महाव्रत है। दोषों से निवृत्त होना वह त्यागबुद्धि वालों का ध्येय है, तो भी त्यागवृत्ति एकसी होती नहीं है। वह उनके विकासक्रम की स्वाधीनता पर निर्भर है। यहाँ तो सूत्रकार का उद्देश्य हिंसादिक प्रवृत्तियों से न्यूनाधिक रूप में भी निवृत्ति होने वालों को विरति मानकर के उनके दो विभाग किए हैं-- महाव्रत और अणुव्रत । [१] पाँच महावत
उपर्युक्त हिंसा-असत्यादि पांच दोषों यानी पापों को मन-वचन-काय से सर्वथा न करना, न कराना और न करने की अनुमति देना। इनको 'महावत' कहते हैं। महाव्रत के पाँच प्रकार हैं, जिनके नाम क्रमशः नीचे प्रमाणे हैं