Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
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(५) वित्त धन प्राप्ति के लिए शीत-उष्ण तथा भूख-प्यास इत्यादि अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। शारीरिक अनेक कष्ट सहन करने पर भी जो नहीं मिले तो मानसिक चिंता इत्यादि दुःख उत्पन्न होता है । कदाचित् मिल भी जाय तो उसके रक्षण के लिए फिर अनेक कष्ट सहन करने पड़ते । चोर इत्यादि नहीं ले जाय उसकी चिन्ता तथा भयादिक मानसिक दुःख भी सर्वदा रहा करते हैं । वित्त धन मिलने पर भी उसकी तृप्ति होती नहीं है । इसलिए नित्य मन अतृप्त रहता है । अतृप्त मानस कभी शान्ति नहीं पा सकता है ।
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धन-दौलत का विनाश हो जाने पर कितने ही जीवों के है। कितनेक जीवों को अतिसार, संग्रहणी तथा क्षय इत्यादि पर्यन्त मानसिक परिताप रहा करता है ।
जो लोभी होता है वह वित्त धन प्राप्त करने की लालसा में विवेक को भी भूल जाता है ।
मैं कौन हूँ ? और कौनसे स्थान में रहा हूँ ? अमुक स्थान में रहे हुए मुझे अब क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ? इत्यादि भूल जाता है । इसे इस लोक में अनेक प्राणियों के साथ क्लेश-कंकास तथा वैमनस्यादिक होने से यह लोक में अप्रिय बन जाता है । इतना ही नहीं किन्तु श्रागे बढ़कर के विवेक को भी भूलकर माता- पितादि को मारने पर्यन्त की प्रवृत्ति करता है । इससे इस लोक में अपकीति आदि प्राप्त करता है ।
हृदय की धड़कन बन्द हो जाती रोग हो जाते हैं या मृत्यु-मरण
इस तरह परिग्रही लोभी जीव-प्रारणी शारीरिक तथा मानसिक अनेक प्रकार के दुःख-कष्ट प्राप्त करता है ।
* परलोक में करुण विपाक
इस लोक में अपाय का दिग्दर्शन कराने के बाद अब परलोक में करुरण विपाक का दिग्दर्शन भी नीचे प्रमाणे है -
पापानुबन्धी पुण्य के उदय वाले किसी जीव को हिंसादिक पापों से कदाचित् इस लोक में उपर्युक्त कहे हुए दुःख अल्प हों कि न हों, तो भी परलोक में तो अवश्य इन पापों के करुण विपाक भोगने ही पड़ते हैं । परलोक में उसके लिए अशुभ गति तैयार होती है । वहाँ शारीरिक और मानसिक अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं । तिर्यंचगति में शीत-उष्ण तथा पराधीनता प्रमुख दुःख कष्ट सहन करने पड़ते हैं । नरकगति तो केवल प्रसह्य दुःख भोगने के लिए ही है । वहाँ पर तो एक क्षण मात्र भी सुख नहीं है, केवल श्री तीर्थंकर परमात्मा के जन्मकल्याणकादि समयक्षरण मात्र बिजली की चमक के माफिक सुख नारक को होता है, शेष समय नहीं । वहाँ असह्य दुःख से कंटाल कर मृत्यु-मरण की इच्छा हो जाय तो भी मृत्यु पाता नहीं है । सम्पूर्ण आयुष्य पूर्ण करने के बाद में ही मृत्यु पाता है ।। ( ७-४)