Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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७।११ ]
सप्तमोऽध्यायः प्रमत्तयोगेन याऽपि क्रिया भवति तदब्रह्म। प्रमादं त्यक्त्वा याऽपि क्रिया भवति यथा वात्सल्यभावेन पिता-भ्रातापितृव्यादिभिः पुत्रीषु स्निह्यन्ते । तदब्रह्म नैव भवति ।। ७-११ ॥
सूत्रार्थ-मैथुन ही अब्रह्म है। अर्थात्-मैथुन वृत्ति को अब्रह्म कहते हैं ।। ७-११ ।।
विवेचनामृत ॥ मिथुन कर्म प्रब्रह्म है। मिथुन शब्द पर से मैथुन शब्द बना हुआ है। मिथुन यानी जोड़ला। मिथुन की अर्थात् जोड़ला की जो क्रिया वह मैथुन ऐसा शब्दार्थ है, किन्तु यहाँ पर शब्दार्थ नहीं, अपितु उसका भावार्थ लेने का है। वेदोदय से पुरुष के संयोग से होने वाली कामचेष्टा-विषयसेवन मैथुन है।
पुरुष-स्त्री दोनों मिलकर जो संभोग क्रिया करते हैं, उसको मैथुन कहते हैं । 'मैथुन ही अब्रह्म' है।
जैसे पुरुष तथा स्त्री के संयोग से होने वाली कामचेष्टा-विषयसेवन से सुख का अनुभव होता है, वैसे ही पुरुष को अन्य-दूसरे पुरुष के हस्तादिक के संयोग से होने वाली कामचेष्टा से स्पर्श सुख का अनुभव होता है। अर्थात् मैथुन का फलितार्थ कामचेष्टा है। किसी भी प्रकार की कामचेष्टा मैथुन है। इसी तरह स्त्री को भी हस्तादिक के संयोग से कामचेष्टा द्वारा स्पर्श सुख का अनुभव होता है। अर्थात् मैथुन शब्द का फलितार्थ कामचेष्टा-विषयसेवन है। किसी भी प्रकार की कामचेष्टा मैथुन कही जाती है। जिसमें स्त्री-पुरुष की अभिलाषा, पुरुष-स्त्री की अभिलाषा, पुरुष, पुरुष; या स्त्री, स्त्री वह भी सजातीय (मनुष्य, मनुष्य जाति) विजातीय (मनुष्य पशु जाति) से कामराग के आवेश से मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्ति को मैथुन कहते हैं या किसी जड़, वस्तु तथा स्वहस्तादिक अवयवों से किये हुए मिथ्याचरण यानी कुचेष्टा भी अब्रह्मचर्य
मैथुन प्रवृत्ति के अनुसरण से सद्गुणों का विनाश और असद्गुणों की सहज अभिवृद्धि होती है। इसीलिए इसको अब्रह्म कहते हैं ।
इस सूत्र का फलितार्थ यह है कि-जिसके पालन से अहिंसादिक आध्यात्मिक गुणों की वृद्धि हो वह ब्रह्म है तथा जिसके सेवन से अहिंसादिक आध्यात्मिक गुणों का ह्रास अथवा विनाश होता है वह अब्रह्म है। किसी भी प्रकार की काम चेष्टा, मैथुन के सेवन से अहिंसादि गुणों का विनाश होता है इसलिए कामचेष्टा अब्रह्म है। मैथुन की निवृत्ति यह ब्रह्म है तथा ब्रह्म का पालन ब्रह्मचर्य है।