Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्याधिगमसूत्रे
[ ७३
* व्रतानां भावना * 卐 मूलसूत्रम्
तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पञ्च पञ्च ॥ ७-३॥
* सुबोधिका टीका * __ ईर्यासमिति-मनोगुप्ति - एषणासमिति-प्रादाननिक्षेपणसमिति-भालोकितपानभोजनानि एतानि पञ्च अहिंसाव्रतस्य भावना। तस्य पञ्चविधस्य स्थैर्यार्थमेकैकस्य पञ्च-पञ्च भावना भवन्ति । तद्यथा च अहिंसायास्तावदीर्यासमित्यादयः पूर्वमेव उक्ता। सत्यवचनस्यानुवीचिभाषणं, क्रोधप्रत्याख्यानं लोभप्रत्याख्यानं अभीरुत्वं हास्यप्रत्याख्यानमिति ।
अस्तेयस्यानुवीच्यवग्रहयाचनमभीक्ष्णावग्रहयाचनमेतावदित्यवग्रहावधारणं समानधार्मिकेभ्यः अवग्रहयाचनं अनुज्ञापितपान-भोजनमिति ।
ब्रह्मचर्यस्य स्त्रीपशुषण्डकसंशक्तशयनासनवर्जनं, रागसंयुक्तस्त्रीकथावर्जनं, स्त्रीणां मनोहरेन्द्रियावलोकनवर्जनं, पूर्वरतानुस्मरणवर्जनं प्रणीतरसभोजनवर्जनमिति । प्राविञ्चनस्य पञ्चानामिन्द्रियार्थानां स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णशब्दानां मनोज्ञानां प्राप्ती गादर्यवर्जनममनोज्ञानां प्राप्तौ द्वषवर्जनमिति ।। ७-३ ।।
सूत्रार्थ-पांच व्रतों की स्थिरता के लिए प्रत्येक व्रत की पांच-पांच भावनाएँ हैं ।। ७-३॥
+ विवेचनामृत उक्त व्रतों की स्थिरता के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनायें हैं। अर्थात्-उक्त हिंसादि पाँच महाव्रतों की स्थिरता (दृढ़ता) के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच-पांच भावनायें होती हैं । जैसे-व्याधिग्रस्त-रोगी जीव को औषध-दवा के अतिरिक्त पथ्य भी अति ही आवश्यक होता है, वैसे ही विरति को भावनायें अनुकरणीय कही गई हैं। व्रत की अनुकूलता के अनुसार स्थूलदृष्टि द्वारा जो मुख्य-मुख्य प्रवृत्तियाँ कही हैं वे सभी भावना के नाम से विख्यात हैं। उनमें प्रयत्नशीलवंत व्यक्ति विरति की उत्तमता तथा व्रत के यथेष्ट परिणामी होते हैं। [१] प्रथम-पहले महाव्रत की पाँच भावनाएं :
(१) ईर्यासमिति, (२) मनोगुप्ति, (३) एषणा समिति, (४) आदान निक्षेपणा समिति तथा (५) आलोकितपानभोजन। ये पांच भावनायें प्रथम-पहले महाव्रत (अहिंसाव्रत) की हैं।