________________
+सिद्धान्तसार
(११७)
दाम दक्ष अचित रुपी-श्राउ-फरसी पुद्गल खवरावी घणा जीवनी रक्षा करावी, बागलानुं हिंसानुं पाप टलाव्युं तेमां गुण केम नथी? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “जीव जीव्या तेतो दया नथी, अने जीव मरे ते हिंसा नथी; पण जीव मारे तेने हिंसा लागे, अने जीव न मारे तेने दया नीपजे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! जीव मुठ अने जीव जीवतो रह्यो ते तो कारण बे, अने हिंसा लागी अने पाप टाढ्यु टलाव्युं ते कार्य बे. ए कारणनो नाश केम करो हो ? केमके कारण विना तो कार्य नीपजे नही. जेम कोइए कंदोश्ना हाटनी सुखमी पोते खावी बोली अनेराने गेमावी, लीलोत्री पोते खावी गेमो अनेराने डोमावी, चोरी करवी पोते गेमी अनेराने बोमावी. हवे कंदोश्ना हाटनी सुखमी रही, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या, अने धणीने घेर माल रह्यो, ते तो कारण डे; अने पोतानुं अने बीजार्नु पाप टलाव्युं ते कार्य जे. हवे कंदोश्नी सुखमी रही, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या, अने शेठना घरमां माल रह्यो, त्यारेज पाप टट्यु; तेम जीव जीवता रह्या तोज दया नीपजी. तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ कोश्ने साधुजीए कुशीलना त्याग कराव्या, तथा दिक्षा दीधी, तेथी तेनी स्त्री कुवामां जा पमी. तेनुं पाप साधुजीने लागवं जोइए. ए पण कारण अने कार्य जे." तेनो उत्तर.
हे देवानुप्रीय ! एमां शुं जुल डे ? जेम सुखमीना त्याग कराव्याथी सुखमी पमी रही जाणे, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या जाणे, श्रने शेठना घेरे माल रह्यो जाणे, तेम कुशीलना त्याग कराव्याथी तथा दीक्षा दीधाथी तेनी स्त्री कुवे पमशे एम जाणीने त्याग करावशे तो तेने पाप लागशेज; पण स्त्रीने मरती जाणे तो साधु मुनीराज त्याग करावेज नही. ए कारण अने कार्य साचुं , पण ते सुखमी अने लीलोत्री, बीजो को खाशे अने चोरीने धन लेशे, तेने पाप लागशेज; पण त्याग कराववावालाने तो ए वस्तु रही. हवे जेना जोगथी ए वस्तु रही, तेनेज गुण नीपज्यो भने पाप टल्यु. एम १ प्रश्नमां दाम दीपा, वस्तु