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(१९९८)
सिदान्तसार अदवा नवि पुन्नंति, एव मेय मह ब्लयं. ॥१७॥ दाणध्याय जेपाणा, हम्मति तसथावरा; तेसिं सारकणछाए, तम्हा अबिति नोवए. ॥ १७ ॥ जेसिंतं जवकप्पंति, अन्नपाणं तदा विहं; तेसिं लानंतरायंति, तम्हा णनितिनोवए. ॥१५॥ जेयदाणं पस्संसंति, वह मिति पाणीणं; जेयणं पमिसेदंति, वित्तियं करंत्तिते. ॥२०॥ दुहन वित्तेण जास्संति, अस्थिवा णस्थिवा पुणो;
आयरयस्स हेच्चाणं, निवाणं पानणंतिते ॥१॥ अर्थः-पुर्ववत्. जुर्व प्रश्न बीजो पाने १२ए में.
नावार्थ:-हवे जु ! था पाठमां एम कडंडे के, गाम या नगरमां गयाथी साधुने को दाननो अर्थी, श्रद्धावंत ग्रहस्थी तथा राजादिक पुढे के, हे स्वामी ! हुं तलाव कुवादिक खोदावं या सतुकारादि दवें तथा पाणीनी परब बंधावु ? ए अनुष्टानमां पुन्य डे के नहि ? एवी सावध (आरंन कारणी) वाण सांजलीने 'ए अनुष्टानमां पुन्य डे' एम पण साधु न कहे, अने 'तमने पुन्य नथी' एम पण साधु न कहे; कारण के ए बन्ने जाषा महा जयतुं कारण ले. अ. हीयां तेरापंथी एम कहे के, “ जो पूर्वोक्त कार्योमां पुन्य होय तो 'तमने पुन्य थशे' एवं केम न कहे ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! दानने अर्थे त्रस स्थावर हणाय, ते जीवोनी रक्षाने अर्थे साधु एम न कहे के, तमने पुन्य थशे; कारण के साधु एम जाणे के, जो ढुंए परब तथा सतुकारादिक दानने प्रशंसीश तो मारा वचनथो त्रसस्थावर-जीवनी घात याशे, एम जाणीने पुन्य न कहे; पण एम तो नथी कछु के, हे साधु ! " ए दानमां पाप बे, तेथी तुं पुन्य मत कहीश." जेम श्रावक साधुजीना सामा जाय तेमां निर्जरा कही, पण मेह वरसतां सा