Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

View full book text
Previous | Next

Page 482
________________ + सिदान्तसार.. पाणीथी स्नान करवानी अने हाथ पग धोवानी श्री नगवंतनी थाझा मानवी पमशे. वली अंबमजी श्रावकने काचुं पाणी पीई अने काचा पाणीथी स्नान करवू पण कल्पे कडं . तेनी शाख सुत्र नववा इजीमां. ते पाठः अममस्सपरिवायगस्स कप्पश् मागहए अदाढए जलस्स पमिग्गदित्तए सेविय वदमाणे णोचेवणं अवहमाणे जाव सेविय एवं थमियं पसणं परिप्रयं णोचेवणं अपरिपूए सेविय सावधेतिका णोचेवणं अणवध सेविय जीवितिकान णोचेवणं अजीवा सेविय दिणे णोचेवणं अदिणे सेविय दत्त दब पाय चरु चम्म पखालणच्याए पिवित्तएवा णोचेवणं सिणाश्त्तए. अममस्सणं परिवायगस्स कप्पश् मागदए आढए जलस्स पमिग्गहित्तए सेविय वहमाणे नोचेवणं अवहमाणे जाव सेविय दिने णोचेवणं अदिणे सेविय सिणाश्त्तएणोचेवणं हबपाय चरु चम्मसं परकालणघ्याए पिवित्तएवा ॥ अर्थः- अ० अंमम परिव्राजकने का कल्पे मा मागध देशन अधु आढुं प्रमाण ज पाणी प० ग्रहवं; से ते पण व वेहेतुं थकुं; पण णो नही निश्चे अणवेहेतुं जाण यावत से ते पण ए एम थ० कादव रहित प० निर्मल प० गलेलं; पण णो नही निश्चे अ० अणगट्यु से तेने पण सा० सावध जाणे, पण णो नही निश्चे अ० निर्वद्य; से० तेने पण जी जीवसहित जाणे, पण णो नहि निश्चे श्रम निर्जव. से ते पण दिदीलु ले, पण णो नदी निश्चे अश्रणदिधुं; से ते पण दंग दांत हा हाथ पा पग च० हामी चाटुवो प० धोवाने अर्थे तथा पि० पीवाने अर्थे ले; पण णो नही निश्चे सि० स्नानने अर्थे कल्पे. अ अंमम परिव्राजकने का कल्पे मात्र मागध देशनो श्राढो

Loading...

Page Navigation
1 ... 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534