Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta
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+ सिद्धान्तसार..
(४८५) धारणाए वट्टमाणे अन्नेजीवे अणेजीवाया जहाणे जाव परिक्कमे वट्टमाणस्स अन्नेजीवे अणेजीवीया नेरश्यत्ते तिरिक मणुस्स देवत्ते वमाणस्स अणे णाणावरणिये जाव अंतराइए वट्टमाणे जाव जीवाया एवं कण्हलेस्सा जाव सुकलेसाए समदिहिए ३ एवं चस्कूदंसणे ४ आनिणोबोदियनाणे ५ मइअनाणे ३ आहारसणाए ४ एवं नरालियसरीरे ५ एवं मणजोगे ३ सागारोवनगे अणा. गारोवउगे वट्टमाणे अन्नजीवे अणेजीवाया से कहमेयं नंते! एवंखलु गोo! जणंते अणबिया एवमाइकर जाव मिबंते एवं मादंसु अदंपुण गो ! एवमाइकामि जाव परवेमि एवं खलु पाणाश्वाए जाव मिहादसणसल्ले वमाणस्स सच्चेवजीवे सच्चेवजीवाया जाव अणागारोवनगे वटमाणस्स सच्चेवजोवे सञ्चवजीवाया.॥
अर्थः-अ० अन्यतिर्थी जग हे भगवान ! ए० एम कहे जे जाण यावत् ए० एम परुपे ने ए० एम खण् निश्चे पान प्राणातिपात मु मृषावाद आदि जाग यावत् मि० मिथ्यात्व दर्सन अने शव, ए १७ पाप स्थानकने विषे व वर्तमान देहधारक जीव अ० ते जोव अनेरो अने अणे जीवात्मा अनेरो. पाण (प्राणातिपातादिक विषे वर्तमान सरीर दीसे पण श्रात्मा नथी दीसतो ते जण) प्राणातिपात वेरमण जाण यावत् प० परिग्रह वेरमण को क्रोध विवेक जाग यावत् मिस मिथ्यात्व दर्सन शव विवेक, एने विषे व० वर्तमाननो अ. जोव अमेरो अने अणे जीवात्मा अनेर कहीए. न० नत्पातनी बुझि जा यावत् प० परणामनी बुद्धिने विषे व वर्तमानने अण् अनेरो जीव अने अ० अनेरी जीवात्मा कहीए. न० अवग्रह ३० (इहा) विचारणा अनिर्गय करवो धाण धारणाने विषे व वर्तमानने अ० अनेरो जाव अ० अनेर। जावात्मा

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