Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

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Page 506
________________ (१८६) +सिद्धान्तसार.. १० नगण जाण् यावत् प० पराक्रम एने विषे व वर्तमान ते अ० जीव अनेरो श्रने अणे जीवात्मा अनेरी कहीए. ने नारकी ति तिथंच योनिक म मनुष्य अने देण् देवपणे व वर्तमानने १० अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीये. पा एम ज्ञानावर्षी जाग यावत् अंगअंतरायने विषे व वर्तमानने श्र० अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीए. ए० एम क० कृष्ण-खेश्या आदी जाग यावत् सु० शुक्ल-लेश्याने विषे वर्तमानने अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीये. स० सम्यक्दृष्टि इत्यादिक ३ ए एम चा दर्शन आदि ४ केदेवा.आप एम मतिज्ञानादि ५ केहेवा. म० एम मतिश्रज्ञानादिक ३ केहेवा. पाण् श्राहार शंज्ञादिक ४ केहेवा. ए० एम न0 उदारीक शरीरादि ५ केहेवा. म० एम मनजोगादि ३ केदेवा. सा० साकारोपयोग अ० अने अनाकारोपयोगने विषे व० वर्तमानने अण् अनेरोजीव अणे अनेरी जीवात्मा कहीए. एम अन्यतिर्थी कहे . से ते क० केम जंग हे जगवान ! प्रश्न. उत्तर. ए० एम निश्चे गोण् हे गौतम ! जण जे जणी अं० ते अन्यतिर्थी ए० एम कहे परुपे जाण् यावत् मि मिथ्या जुटुं ए० तेमनुं ए केहेवू. श्र० हुँ वली गो हे गौतम ! ए एम कहुं हुं जाग यावत् प० एम परपुं हुं ए० एम खण् निश्चे पा प्राणातिपात श्रादि जाग यावत् मिग मिथ्यात्व दर्शन शस्यने विषे व वर्तमाननो स तेज जीव स तेज जीवात्मा इत्यर्थः कथंचित्त एवं जाणवू नही एने मांदोमांही असंत नेद ते माटे. जाग यावत् अ अनाकारोपयोगने विषे व वर्तमान स तेज जीव स० तेज जीवात्मा इत्यादिक सर्व केहे.. जावार्थः-हवे जुन ! श्रा पाठमा १७ पाप, १७ पापनुं वेरमण, ४ बुद्धि, श्रवग्रहादि चार मतिज्ञाननानेद, ५ नगणादिक, ४ गति, ८ कर्म ६ लेश्या, ३ अष्टी, ४ दर्शन, ५ ज्ञान, ३ अज्ञान, ४ संज्ञा, पांच शरीर, ३ जोग अने १२नुपयोग, 'सागारवनता मणागारवनता' ए ए६ बोलमां वर्तवावालो जीवन्यारो थने ए बोल न्यारा, एम अन्यतिर्थी कहे , तेने नगवंते जुग बोला कह्याः अने नगवंते ए एद बोल अने जोवने

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