Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

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Page 528
________________ ( ५०८) + सिद्धान्तसार.. संख्याता ध० धर्मास्तिकायना प्रदेश, ते स० सर्व कसीण समग्र प० प्रतिपूर्णक यात्म स्वरुपे विकल्प नही. ते पण नि प्रदेशान्तरथी पण स्वजावे करी हीन नही एटले एक प्रदेशनो पण अंतर नही. ए एक शब्दे धर्मास्तिकाय एवा लक्षणे करी जे सर्व शब्द एकार्थ डे ए एने गो हे गौतम ! ध धर्मास्तिकाय कहीये. अहीयां ए नावार्थ धर्मा. स्तिकायना असंख्यात प्रदेश २ ते मांहीलो एक पण प्रदेश उगे होय तेने धर्मास्तिकाय न कहीये. ए० एम श्र० अधर्मास्तिकाय, पण स्व. रुप धर्मास्तिकायनी परे जाणवं. श्रा० श्राकाशा स्तिकाय जी0 जीवास्तिकाय अने पो० पुद्गसास्तिकाय पण ए० एमज धर्मास्तिकायनी परे जाणवी. पण पण एटबुं विशेष के ति धर्मास्तिकाय अने श्रधर्मास्तिकाय ए बेचना प्रत्येके अ० असंख्याता (अनंता) प्रदेश ना केहेवा अने ए त्रणना अनंता प्रदेश केहेवा से शेष तं० तेमज जाणवू. नावार्थः-हवे था पाठमां एम कडं के, एक प्रदेशने तेमज बे त्रण यावत् संख्याता असंख्याता प्रदेशने पण धर्मास्तिकाय न कहीए. तेमज एके प्रदेश नंणो होय तेने धर्मास्तिकाय न कहोए. असंख्याता धर्मास्तिकायना संपूर्ण प्रदेश (एके प्रदेश नंणो नही ते . प्रतिपूर्ण) अव्य, क्षेत्र, काल, नाव, गुण अने पर्याय सर्व एक ग्रहणे ग्रह्या तेने धर्मास्ति-काय कहीये. एम धर्मास्ति-कायने, श्राकाशास्तिकायने अने जीवास्तिकायने एमज केहेवी. ___हवे जुलं ! श्रींयां एम कयुं के, एक पण प्रदेश को होय तेने जीव न कहीए; पण संपूर्ण प्रतिपुर्ण प्रदेश गुण पर्याये कररी सहित होय तेने जीव कहीये. या पाठमां एक पण प्रदेश उंणो होय त्यां सुध) प्रजुए अव्यने अव्यमां न गएयो; त्यारे जे वस्तु (उपयोग ते) मुलगोज ज गुण ले तेने एकान्त नये जीव शी रीते कहोये ? वलो जे बार नपयोगने प्रात्मा कह्यो , ते तो आत्माए करी जीवपणुं (चैतन्यपणुं) जणावे . इहां जीवने अने उपयोगने न्यारो कह्यो बे, तेने जीव केम कहीये ? पर्यायने पर्यायज कहीये. मनुष्य अने वृक्षनी बायाना अष्टान्ते. मनुष्य अने वृक्षनी गया कहीये, पण गयाने मनुष्य के वृक्ष न कहीये.

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