Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta
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( ४८४ )
+ सिद्धान्तसार.. शुन्नाशुन कर्म पुद्गल जे ते जीवने लोलोजुत डे त्यां मुधी तेने जीव कह्या बे.
हवे पुन्य, पाप अने बंधने जीव कया न्याये कहीये ते कहे बेःपुन्य, पाप अने बंध, व्यवहारमा जीवन लक्षण, कारण के एनो कर्ता जीव , ए त्रणे जीव पणे प्रणम्या अने ए त्रणे जीवने लोलीजुत जे.ए न्याये ए त्रणने जीव कहीये. (१). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव कया न्याये कहीयेः-अनुयोग छारमा सात नयने पाथा नपर नतारी . तेमां उपली त्रण नयना धणी, जीवना नपयोगने पाथो माने. ए अष्टान्ते नपली त्रण नयना धणी जीवना नपयोगने पुन्य, पाप अने बंध माने; कारणके नपयोग आत्मा ने अने आत्मा नाम जीवनुं . ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. (२). वली पुन्य, पाप थने बंधने जीव ए न्याये कहीयेः-चारगति, पांचजाति इत्यादि पुन्य, पाप अने बंधनी प्रक्रति बे. ते चार गति अने पांच जाति इत्यादिमां जीव कह्या . तेनी शाख सूत्र आवश्यक, दसवैकालीक, नगवती अने पनवणा श्रादि अनेक सूत्रमां. ए न्याये पण पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीये. (३). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहोये:पुन्य पाप शुन्नाशुज कर्म डे अने बंध पण शुजशुन कर्म प्रकतिनो डे अने आठ कर्मने अने जीवने एकज कह्या , तेम अढार पापने अने जीवने एक कह्यो बे. तेमज पांच शरीरने अने जीवने पण एकज को जे. शाख सूत्र नगवतो शतक सत्तरमे उद्देसे बीजे. ते पाठ:
अपबियाणं नंते ! एवमाइख जाव परुवेश एवंखल पाणाश्वाए मुसावाए जाव मिहादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्नेजोवे अणेजावाया पाणावायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिनादसणसल्लविवेगेवमाणस्स अन्नेजोवे अणेजीवाया जप्पतियाए जाव परिणामियाए वह एस्स अन्नेजावे अणेजोबाया नग्गहे इदा अवाए

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