________________
+ सिद्धान्तसार..
(४१५ )
बुबायाँ , विण्बारणां माटीथी लीप्यां , लंग नपर रेखा कीधी बे, मुण मों पर मुजा कीधी ने अने पि लुगझेबांधी ने, एवे स्थानके कल्पे नि० साधु साधवीने वा चोमासे व २हे. न० उपाश्रयनी अं० मर्यादामां सु० मदिराना अचेत कुंन सो खाटा मदीराना अचेत कुंज २० ग्रहस्थे मुक्या , तेवा स्थानके नो न कटपे नि साध साधवीने १० हायनी रेखा सुकाय तेटलो जघन्य काल पण व रहे. हुए बाहार बीजो न उपाश्रय प० गवेषतां थकां नो जो बीजुं स्थानक न मले न पामे तो ए० एम पूर्वोक्त स्थानकमां का कटपे ए० एक रात्री दु० वे रात्री व रहेQ (जरुर कारणे). नो न कल्पे तेमने पानपरान्त एण एक रात्री दुबे रात्री वा रहेवू; कारण के जे जे ताहां ए एक रात्री दुबे रात्री प० नपरान्त वसे तेने से तेटला दीनना बे चारित्रनो बेद प० ते विशेष प्रायश्चित आवे ॥२॥ न नपाश्रयनी अंग मर्यादामां सि० शीतल पाणी वि० श्रचेत पाणीना कुंन न नंना पाणीना वि० कुन बंधोल करवाना न मुक्या थाप्या होय, तीहां नो न कल्पे नि० साधु साधवीने श्र० हाथनी रेखा सुकाय तेटलो जघन्य काल पण व वसवू. दु बाहार बीजो न उपाश्रय प० गवेषतां जोतां थकां नो न मले (बीजु स्थानक) तो तेने ए० ए का कहपे ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहेq ( जरुर माटे ). नो न कटपे तेमने प0 उपरान्त ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहे. जे जे तीहां ए० एक रात्री दुबे रात्री प० उपरान्त जेटर्बु श्रधिकुं रहे से तेटला दीवसना चारित्रनो बेद थाय तथा प० तप प्रायश्चित पामे ॥३॥ ज० उपाश्रयनीधे मर्यादामां स० श्राखी रात्री जो अग्नि बलती होय एवे स्थानके नो न कल्पे नि साध साधवीने श्राप हाथनी रेखा सुकाय तेटलो काल पण व० रेहेवू. बाहार बीजो 30 नपाश्रय प० गवेषतां (जोतां) थकां नो न मले न पामे (बीजुं स्थानक), ता ए० ए पूर्वोक्त स्थानकमां का कप्पे ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहे, (जरुर माटे). नो न कल्पे से तेने प० नपरान्त ए० एक रात्री दुबे रात्री व वसवं रेहे. जे जो.