Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

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Page 476
________________ ( ४५६ ) + सिदान्तसार.. नीनी बे समयनी स्थितीनी बंधाय. बाकी सर्व पुन्व पापना कर्मनो अबंध , तेथी विहारादिक करी रियाविही पण पमिकमता नथी. तेमज नदी नतरीने पण केवली रियावही पमिकमे नही तथा चोवीसयो पण करे नहीं; कारण के केवलीने सर्व कार्य करतां पापनो बंध नथी, तेथी केवली नदी नतरे तोपण तेमने पाप लागे नही; अने बद्मस्थ साधुने तो विहारादिक करतां पण पाप लागे अने सात कर्म बंधाय बे, तेथी रियावही पमिकमे बे, तथा गोचरीमां पण गमणागमण करी पाग श्रावीने रियावहि पमिकमे . तेमज नदी नतरतां उमस्थ साधुने पाप लागे बे, तेथी नदो उतरीने रियावही पमिकमे तथा चोवीसथो करे ये. वली नदी नतरतां सरागी बद्मस्थ साधुने उ सात तथा आठ कर्मनो बंध थाय जे. ज्ञानावरणी श्रादिक पाप कर्म नदी उतरतां बंधाय बे, तेथीनदो नतरवामांश्राझा धर्म नथी. वली जो नदी उतरवामां थाज्ञा धर्म होय तो वारंवार नदी नतरे तो शबलो दोष लागे कडं ते केम केहत ? शाख सूत्र दसाश्रुतष्कंध अध्ययन बोजे. ते पाठ: अंतोमासस्स त उदगलेवे करेमाणे सवले ॥ अंतोमासस्स तन मारहाणे करेमाणे सवले ॥ अंतो संवन्चरस्स दश उदग लेवे करेमाणे सवले ॥ अंतोसंवबरस्स दसमाकाणाई करेमाणेसवले. - अर्थः-अं० एक मासमां त त्रण वार उ० नदी उतरे तो नदक लेप (जे नानि प्रमाण जल अवगाहे ते) करे तो स० सबलो दोष लागे. अं एक मासमां बल वचन बोले, प्रतित नपजावे, यथा गिला. एने कहे के “ ए श्राहार तो ले पण तमने सदे अथवा न सदे” एम पोते खावानी बुझे कहे, ए मायानु स्थानक. एवां त त्रण मा० माया स्थानक का करतो थको जेवो करण योग होय तेवो स० सबलो दोष लागे. अंग एक सं० वर्षमा ३० दस वार नदी उतरे तो उ० नुदकखेप (नानि प्रमाणे जल अवगाहे ते) लगामतो थको स सबखो दोष

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