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+ सिद्धान्तसार..
( १६३ )
कपटेकरी सहित मिमिथ्यादृष्टि श्र० अनार्थ उ जे वचनथी पर... जीव चंचो नबले, माथे चाटको नवे तेवा वचननो बोलणहार दुष्ट वचननो बोलणहार ते ते चोरीनो करणहार मा अनेरानीसंपदा सह। न शके ए० एवा जो व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव का कापोत-लेश्याने प्रणामेकरी परीणमे. (३) हवे तेजु-लेश्यानां लक्षण कहे
-नी० मन वचन कायाएकरी नोची वृत्ति (मान रहित) अ चपसपणा रहित अ० माया रहित अ० कुछ कुतुहल रहित वि वनित होय वि० विनय करवाने विषे दंग इंजिनो दाए हार जो स्वाधागादिकने व्यापारेकरी सहित होय, सिद्धान्त नाता (१० धजेने बहन के द० धर्मने विषे निश्चल होय व पापथ। नो० बोहे हि मो कनो वंबणहार एण् एवा धर्मना व्यापारेकर सहित होय ते जीव ते तेजु. लेश्याने प्रणामेकरो परिणमे. (४) हवे पद्म-लेश्यानां लक्षण कहे डेःप० पातला (थोमा) ने जेने को क्रोध, मान, माया अने लोन, प० रागद्देषथो नपशम्युं के चि० चित्त जेनु, द० दम्यो के श्रात्मा जणे, जो मनः वचन कायाना जोग वसले जेना, उ सिद्धान्त नणतां जे तप करवो जोइए ते तपवंत होय तक तेम प० थोमा वचननो बाग बोलणहार उ उपशान्त थयो (विशम्यो) होय जि0 जितेंति ए० एवा जो धर्मना व्यारेकरी सा सहित होय ते जीव प० पद्म-खेश्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (५) हवे शुक्ल लेश्यानां लक्षण कहे --अ० श्रातध्यान अने रु० रुपध्यान व वर्जे, ध धर्मध्यान अने शुक्वध्यान द्या ध्यावे, प० रागद्देषेकरउपयम्युं ले चित्त जेजें, दं० दम्यो आत्मा जेणे, स० पांच सुमतिवंत गुण्त्रण गुप्तिने विषे गुप्तिवंत स० राग सहित, अथवा वी0 वीतराग होय ना रागद्देष नपशमाव्या ने जेणे, जो जीतेंज्यि ए० एवा जो गुणना व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव सु० शुक्ल-श्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (६) हवे लेश्यानां स्थानक कहे :-- असंख्याती न उत्सर्पिणीना जेटला समय चमता नतरता नाक थीयं तेना श्रने अ असंख्याती अवसर्पिणीना जेटला