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4 सिद्धान्तसार..
आ० अनेरां पण शरीरनां श्राजरण स० ते वाण पाप नामांकित लइने मा० मागध तीर्थ- द पाणी राज्यातिषेक जोग गे ले, लेश्ने ता ते देवतामां प्रसिद्ध उ उत्कृष्टी विवहार जोग्य गति तु मननी उतावली गति चा कायानी नतावली गति चं क्रोधे कर जेवी उतावली गति ने तेवी ने चालवाना गुणमां निपुण डेक जण अति वेग गतिए चाखे, न शरीरना अवयव कंपावती गति सि० शीघ्र गति दि० प्रधान देश देवतानी बंची गति वी० हीमो हीमो एवी नतावली गति करीने श्रा. वतोयको जे जीहां जानरत राजा ते तीहां उ० आवे, श्रावीने
श्रधर आकाशे उन्नो रह्यो थको स० न्हानी घुघरी घमकावतो थको पं० पांच वर्णनां व वस्त्र तथा प० उत्तम प० चीर पहेयाँ जे जेणे एवो का करतल (हाथनां तलां) प० परिग्रहित सहित बे हायना द" दश नख सिप माथे श्रावर्तन करीने तथा म० मस्तके अंग अंजली करीने जा नरत राजाने जा जय वि० विजय शब्द करीने व० वधावे, वधावीने ए० ए व कहे, अ जीत्यो आशा वश कयों देण्हे देवानुः प्रीय ! तमे के केवल कल्प सघ ना जरत केत्र पु० पूर्व दिशे माल मागध तिर्थनी मे मर्यादा लगी श्र० हुँ तमारो विश्वासी देण्हे दे. वानुप्रीय ! तमारा देशनो वि० वशणहार अ० हूं तमारो श्रा० श्राज्ञा कारी किं० (शेवक) चाकर बूं. अ० हूं तमारो दे हे देवानुप्रीय ! पु० पुर्व दिशाना अंग अंत (जेमा) नो पालक, पूर्व दिशाना माणसने नप.
व्यादिकनो निवारणहार ढुं. तं० ते माटे वान्डो देव हे देवानुप्रीय। म० मारं ए० एवं पी० (प्रीतीदान) नेटणुं क्यो. ति एवं कहीने हा हार मा मुकुट कुंबे कुंमल का कमांनी जोमी जा जावत् मा० मागधतीर्थ- द. पाणी उ० नेटणुं श्रापे. त० तेवारे से ते ना जरतराजा मा मागध ति तीर्थ कुमारनामे दे० देवतार्नु ३० एवं पी। प्रीतीदान (नेटj) प० ले, लश्ने मा० मागध तिर्थकुमार देवताने सा वचने करी सत्कारे सम्मान सन्मान करे, वस्त्रादिके सन्मानीने उठी उजो थाय प० प्रतिविसर्जे (पोताना स्थानके जवानी प्राज्ञा दे).