Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra,
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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१६
श्रीमद् राजचन्द्र
४३३
४.६
४३४ ४३४ ४३४ ४३४ ४३५ ४३५ ४३६ ४३७ ४३८
४३८ ४३९
४४० ४४०
पत्रांक
| पत्रांक *४४१ व्यवसायसे निवृत्ति
४०३ ४७४ व्यापार आदि प्रसंगसे निवृत्ति *४४२ एकदेश संगनिवृत्ति
४०३ ४७५ मुख्य विचार ४४३ निवृत्तिकी भावना
४.४ ४७६ महापुरुषोंका वचन ४४४ योगवासिष्ठ आदि श्रेष्ठ पुरुषोंके वचन ४०४ *४७७ जीवनकाल किस तरह भोगा जाय ४४५ आत्महितमे प्रमाद न करना
४०५ ४७८ उदास भावना ४६ भद्रजनोंका वचन
४७९ छूटनेका मार्ग *४४६(२,३) प्राप्त करने योग्य स्थान-सर्वश- ४८० प्रेम और द्वेषसे संसारका प्रवाह
पदका ध्यान ४०६ ४८१ बंध-मोक्षकी व्यवस्थाका हेतु ४४७ गांधीजीके २० प्रश्नोंके उत्तर ४०६-१५ ४८२ छह पद (गांधीजीको) ४४८ मतिज्ञान आदिसंबंधी प्रश्न
४१६४८३ बंधमोक्षकी व्यवस्था ४४९ वैराग्य उपशमकी वृद्धिके लिये ही
४८४ तीव्रज्ञान दशा शास्त्रोंका मनन ४१६ ४८५ आत्मस्वभावकी प्राप्ति ४५० श्रीकृष्णकी आत्मदशा
४१७ ४८६ तृष्णा घटाना ४५१ मुमुक्षुकी दो प्रकारकी दशा
| ४८७ तीर्थंकरोंका कथन ४५२ विचारवानको भय
४१७ | ४८८ मोतीका व्यापार जीवकी व्रत, पत्र नियम आदिसे निवृत्ति (४८९ आचारांग आदिका वाचन ४५३ योगवासिष्ठका वाचन
४१८
| ४९० पदार्थकी स्थिति ४५४ इच्छानिरोध करनेका अनुरोध
४१९
| ४९१ व्यवहारोदय ४५५ ज्ञानीकी भक्ति
| *४९२ लोकव्यवहारमें अरुचि *४५५ (२) हे जीव ! अंतरंग देख
कुन्दकुन्द और आनंदघन
४१९ वर्ष २८ वाँ
* ४९३ " जेम निर्मळता रे" ४५६ परमपद-प्राप्तिकी भावना (कविता) ४२०-३ |
४९४ प्रारब्धोदयकी निवृत्तिका विचार
४९५ केवलज्ञान *४५७ गुणस्थान
४९६ आत्मस्वरूपके निश्चयमें भूल ४५८ ब्रझरसकी स्थिरतासे संयमकी प्राप्ति
४९७ वैराग्य उपशमकी वृद्धि *४५९ निवृत्तिकी भावना
४२३
४९८ जिनभगवान्का अभिमत *४६० अपूर्व संयम
४२४
४९९ शानदशा ४६१ चौभंगीका उत्तर
४२४
५०० मोहनीयका बल ४६२ तादात्म्यभावकी निवृत्तिसे मुक्ति
४२४
*५०१ कार्यक्रम ४६३ प्रवृत्तिमें सावधानी
४२४
५०२ धर्मको नमस्कार ४६४ परमाणुकी व्याख्या
*५०२ (२) " सो धम्मो जत्य दया" ४६५ निवृत्त होनेकी भावना
५०३ अमुनि, त्याग आदिके विषयमें ४६६ प्रारब्धका भोग
५०४ क्षणभंगुर देह द्रव्यादिकी इच्छासे मुमुक्षुताका नाश ४२७
| ५०५ समस्त शानका सार ४६७ दुःखको धैर्यपूर्वक सहन करना ४२८-९
५०६ शानका निर्णय ४६८ समाधि-असमाधि
__४२९ ५०७ सर्व विचारणाका फल ४६९ दुःषमकालके कारण सकामवृत्ति ४३० | ५०८ श्रीजिनकी सर्वोत्कृष्टता ४७० उदयके कारण व्यवहारोपाधि ४३१ | ५०९ वेदान्त और जैनदर्शनकी तुलना ४७१ जीव विचारोंको कैसे दूर करे ४३१ | ५१० उपाधिविषयक प्रश्न *४७२ द्रव्य, क्षेत्र, काल भावसंबंधी ४३१ | ५११ आस्थिर परिणामका उपशम ४७३ असंगभाव
४३२ | ५१२ स्वपरिणतिमें स्थिर रहना
४४२
३
४४४ ४४४ ४४४
४२५
४२६ ४२७
४४६
४४६ ४४६-७
४४८ ४४८ ४४८
४४९ ४४९-५०

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