Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra,
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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विषय-सूची
३८९
पत्रांक पृष्ठ पत्रांक
पृष्ठ २८१ आत्माका धर्म आत्मामें
३५४ ४१४ साधुको पत्र समाचार आदि लिखनेका ध्यान देने योग्य बात ३५५
विधान ३७६-९ ३८२ शानी पुरुषके प्रति अधूरा निश्चय ३५६ | ४१५ साधुको पत्र समाचार आदि लिखनेका २८३ सच्ची शानदशासे दुःखकी निवृत्ति
विधान ३७९-८१ ३८४ सबके प्रति समदृष्टि ३५७ ४१६ पंचमकाल-असंयती पूजा
३८२ ३८५ महान् पुरुषोंका अभिप्राय ३५७ | ४१७ नित्यनियम
३८२ ३८६ बीजशान
३५८ ४१८ सिद्धांतबोध और उपदेशबोष ३८३-५ ३८७ सुधारसके संबंध
३५८-९ ४१९ संसारमै कठिनाईका अनुभव ३८६ ३८८ ईश्वरेच्छा और यथायोग्य समझकर मौनभाव ३६० *४१९ (२)आत्मपरिणामकी स्थिरता
३८६ ३८९ " आतमभावना भावतां" ३६. ४२. जीव और कर्मका संबंध
३८६-७ ३९. सुधारसका माहात्म्य
३६१ संसारी और सिद्ध जीवोंकी समानता ३९१ गाथाओंका शुद्ध अर्थ
३६१ *४२० (२) जैनदर्शन और वेदान्त ३८८ ३९२ स्वरूप सरल है
३६१ ४२१ वृत्तियोंके उपशमके लिये निवृत्तिकी २७ वाँ वर्ष
आवश्यकता ३९३ शालिमद्र धनाभद्रका वैराग्य ३६२ ४२२ शानी पुरुषकी आशाका आराधन ३९४ वाणीका संयम ३६२ अज्ञानकी व्याख्या.
३८९-९. ३९५ चित्तका संक्षेपभाव
३६२४२९ (२) “नमो जिणाणं जिदमवाणं" ३९०-१ ३९६ कविताका आत्मार्थके लिये आराधन ३६३ | ४२३ सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके व्याघातसंबंधी प्रभ ३९१ ३९७ उपाधिकी विशेषता ३६४ | ४२४ वेदांत और जिनसिद्धांतकी तुलना
३९२ ३९८ संसारस्वरूपका वेदन
३६४ | ४२५ व्यवसायका प्रसंग ३९९ सब धर्मों का आधार शांति
३६४|४२६ सत्संग-सद्वाचन ४०० कर्मके भोगे बिना निवृत्ति नहीं
| ४२७ व्यवसाय उष्णताका कारण
३९३ ४०१ सुदर्शन सेठ
३६५ ४२८ सद्गुरुकी उपासना ४०२ 'शिक्षापत्र' ३६५ ४२९ सत्संगमें भी प्रतिबद्ध बुद्धि
३९४ ४०३ दो प्रकारका पुरुषार्थ
३६५ | ४३. वैराग्य उपशम आनेके पश्चात् आत्माके ४०४ तीर्थकरका उपदेश
३६६ रूपित्व अरूपित्व आदिका विचार ३९४ ४०५ व्यावहारिक प्रसगोंकी चित्र-विचित्रता ३६७ ४३१ पत्रलेखन आदिकी अशक्यता ४०६ षट्पद ३६७-९ ४३२ चित्तकी अस्थिरता
३९५ .*४०१ (२) छह पद
बनारसीदासको आत्मानुभव
३९५ ४०७ दो प्रकारके कर्म ३७०-१ प्रारब्धका वेदन
३९६ ४०८ संसारमै अधिक व्यवसाय करना
४३३ सत्पुरुषकी पहिचान
योग्य नहीं ३७१ | ४३४ पद आदिके बाँचने विचारनेमें उपयोगका *४०८ (२,३,४) यह त्यागी भी नहीं
अभाव ४०९ गृहस्थमें नीतिपूर्वक चलना
३७२ | ४३५ बाहा माहात्म्यकी अनिच्छा ४१. उपदेशकी आकांक्षा ३७३ सिद्धोंकी अवगाहना
३९९-४०० ४११ 'योगवासिष्ठ
३७३ | *४३६ वैश्य-वेष और निमंन्यभावसंबंधी विचार ४.. ४१२ व्यवसायको घटाना ३७३ | ४३७ व्यवहारका विस्तार
४०१ ४१३ वैराग्य उपशमकी प्रधानता ३७४४३८ समाधान
४.२ उपदेशशान और सिद्धांतशान ३७४-५ *४३९ देहमें ममत्वका अभाव
४०२ .४१३ (२)एक चैतन्यमे सब किस तरह पटताहै।३७५ | *४४. तीन बातोंका संयम
३९४
३७२
५.२

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