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प्रथमकाण्डम्
७१ . जलवर्गः ९ नौतार्य त्रिषु नाव्यं स्या-त्तरणिनीस्तरिः स्त्रियाम् ॥२७॥ पोतस्तु पुंसि वोहित्थं वहिन बहनं च तत् । स्रोतः स्वतोऽम्बुसरणे प्लबकोलौ तथोडुपः ॥२८॥ काष्ठाऽम्बुवाहिनीद्रोणी गुणवृक्षस्तु कूपकः । अरि केनिपाते ऽथ नौदण्डे क्षेपणीस्त्रियाम् ॥२९॥ आतराऽतितरौस्यातां तरपण्येऽथ सेचनम् । सेकपात्रेऽथ नावोऽर्धेऽर्धनावं ल्कीब लिङ्गकम् ॥३०॥ नावि कः कर्णधारः स्या स्पोतवाहो नियामकः । पारंग त्रिषु पारीणो ऽवारपारीण इत्यपि ॥३१॥
हिन्दी-(१) नौका से पार करने योग्य जलनदी आदि को 'नाव्य' कहते हैं त्रिलिङ्ग । (२) नौका के सात नाम-तरणि १ तरि २ नौ ३ स्त्री०, पोत ४ पु०, वोहित्थ ५ वहिन ६ वहन नपुं० । ३ अकृत्रिम जलप्रवाह को 'स्रोतस्' कहते हैं, नपुं । ४ तृणादि निर्मित नौका के तीन नाम-प्लब कोल २ उडुप ३ पुं. । काष्ठ आदि से नौकाकार बनाई गई जलसेचनी का एक नामद्रोणी १ स्त्री० । पाल जिसमें बांधे जाय उस काष्ठ के दो नामगुणवृक्ष १ कूपक २ पु० । नौका को चलाने वाले काष्ठ के दो नाम-अरति १ नपुं, केनिपातक २ पुं० । (८) नौका के किनारे में बाधे गये चालन काष्ठ के दो नाम–नौ दण्ड १ पु०, क्षेपणी (क्षिपणी) २ स्त्री० । (९) नौका उतराई मूल्य के दो नाम-आतर १ अतितर २ पु०। (१०) नौका से जल निकालने के पात्र के दो नाम-सेचन १ सेकपात्र २ नपुं०।
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