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द्वितीयकाण्डम्
क्षत्रियवर्गः९ गुणाः यानाऽऽसनद्वैध विग्रहोऽऽश्रय सन्धयः । त्रिवर्गस्तु क्षयो वृद्धिः स्थानं दण्डस्तु साहसम् ॥८॥ दमश्चाऽथोपंधाधर्मा-धैभृत्यादि परीक्षणम् । प्रेभावो दण्ड तेजः प्रतापः कोशजं तथा ॥८२॥ उपायाः सामदानं च भेदो दण्डोऽथ शक्तयः। तिखः स्युमन्त्रणोत्साह प्रभाव जनिता इमाः ॥८३॥ रोजामन्त्री सुहृत्कोषो राष्ट्र सैन्यं च दुर्गभूः । राज्याङ्गं प्रकृतिस्तु स्यात् पुरश्रेणि युतं च तत् ॥८४॥
(१) राजाओं में जो छ गुण होते हैं वे ए हैं- यान १ आसन २ द्वैध ३ विग्रह ४ आश्रय ५ सन्धि ६ पु० । (२) त्रिवर्ग के तीन नाम-क्षय १ पु० वृद्धि २ स्त्री०, स्थान ३ नपुं० । (३) दण्ड के तीन नाम- दण्ड १ दम २ पु०, साहस ३ नपुं० । (४) भृत्यादि की धर्म आदि से परीक्षा का एक नाम-उपधा १ स्त्री० । (५) दण्ड से प्रसिद्ध तेज का एक नाम- प्रभाब १पु० (६) भरपूर खजाने की प्रसिद्धि का एक नामप्रताप १ पु० । (७) ए उपाय चतुष्टय हैं-साम१ दान २ नपुं०, भेद ३ दण्ड ४ पु० । (८) राजाओं के पास शक्तियां तोन होती हैं- मन्त्रणाशक्ति १ उत्साहशक्ति २ प्रभावशक्ति३ स्त्री० । (8) राज्याङ्ग सात हैं-राजा १ मन्त्री २ सुहृत् ३ कोष ४ पु०, राष्ट्र ५ सैन्य ६ नपुं०, दुर्गभू ७ स्त्री० [नगर के पृथक् २ दलों के मुखिया के साथ राज्य की प्रजा भी राज्याङ्ग हैं- यों पूर्वोक्त माठ के आठ राज्याङ्ग हैं।)
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