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तृतीयकाण्डम् ३५८ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५: टीका शेफालिका लङ्का घातकी पग्जिकाढकी ॥९॥ सारिको सिघ्रका हिक्का प्राचिकोल्का पिपीलिका । कणिका तिन्दु की भङ्गिः सुरङ्गामाढि सूचयः ॥१०॥
कन्था साति रथा सन्दी नाभिराज सभा तथा । वितण्डा काकिणो पिच्छा शाणी चूणि ट्रेणी दरत् ॥११॥
चर्चरी झल्लरी होरा पारी लट्वा च सिद्मला । लिक्षा लाक्षाऽथ गण्डूषा चमसी गृध्रसी मसी ॥१२॥ इत्येवं स्त्रीत्वसंयुक्ताः शब्दाः स्त्रीत्वे प्रकीर्तिताः ।
हिन्दो-(१) टीका शेफालिका, लङ्का, घातको पञ्जिका आढकी ये शब्द खोलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । शेफालिका सिंहर. हार फूल को कहते हैं । जो कि रात में खिलते ही जमीन पर पड़ जाता है ।
(२) सारिका (मेना) शब्द स्त्रीलिङ्ग है। सिध्र का (सीध नाम का वृक्ष विशेष शब्द एवं हिक्का (हिचकी) शब्द प्राचिका (वनमक्षिका) शब्द, उल्का (टूट तारा) शब्द, पिपीलिका (छोटीकीट पतङ्ग) शब्द, कणिका (अत्यन्त छोटा कण) शब्द, तिन्दुकी शब्द, भङ्गि (छटा विच्छित्ति विशेष) शब्द, सुरङ्गा (सुरङ्ग) शब्द, माढि (बाण पत्र का अग्रभाग) शब्द, आसन्दी (कुर्सी), नाभि राजसभा वितण्डा, काकिणी (कौरो) पिच्छा (मयर पिच्छ) शाणी (शाण) चूर्णि, द्रुणो (कच्छप') दरत् (प्रपात) चर्चरो (गीतवाद्य) झल्लरी (झाल) होरा (लाल) पारो (दहनपात्र) लट्वा (लटवा) सिद्मला लिशा लाक्षा गण्डूषा चमसो गृध्रसी (वात व्यात्रि विशेष) मसा (स्याही) ये सब स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त हते हैं ।
स्त्रीलिङ्ग समाप्त ।
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