Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 387
________________ तृतीयकाण्डम् ૨૭૪ लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ३ आदि नाम्नां बहुव्रीहि रन्यलिङ्गः प्रकीर्तितः । गुणि दैव्य क्रिया शब्दा विशेष्यस्यानुगामिनः ॥ ५७ ॥ कर्तृकर्मणि कृत्याच कृतः कर्तर्यनामनि । अर्णादि प्रत्ययान्ताश्च रक्ताद्यर्थे समागताः ॥ ५८ ॥ शब्दा नानार्थसम्पन्ना वाच्यलिङ्गा उदाहृताः । शब्दाः पैट् संज्ञका युष्मदस्मदी च तिङव्ययम् ॥ ५९ ॥ त्रिलिङ्गेषु समानास्ते विरोधे परमेव तत् । (१) दिगवाचक शब्द से भिन्न शब्द वाला बहुव्रीही समास अन्य पदार्थ के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होता है जैसे- बहुधनः पुरुष: बहुधना स्त्री बहुधनं कुलम् इत्यादि (२) शुक्लादि गुणवाचक शब्द गुणी परक होने पर विशेष्य के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होते हैं जैसे - शुक्लः पटः शुक्ला शाटी, शुक्लं वस्त्रम् इत्यादि एत्रं द्रव्य वाचक तथा क्रिया वाचक शब्द भी विशेष्य के लिङ्गानुसार होते है जैसे दण्डी पुरुष दण्डिनी शाला दण्डिकुलम् एवं पाचकः पुरुषः पाचिका स्त्री पाचकं कुलम् इत्यादि (३) कर्ता तथा कर्म वाध्य में प्रयुक्त कृत्प्रत्ययान्त शब्द एवं संज्ञा से भिन्न स्थल में कर्ता वाच्य में प्रयुक्त कृदन्त प्रत्ययान्त शब्द तथा रक्ताद्यर्थ में प्रयुक्त अणादि प्रत्ययान्त तद्धितान्त शब्द नानार्थ में सम्पन्न होने से प्रधानवाच्यार्थ के लिङ्गानुसार प्रयुक्त होते है। जैसे- भव्यः भव्या भव्यम् कार्यः कार्या कार्यम् कर्ता कर्त्री कर्तृ कौङ्कुमं वस्त्रम् कौकुमी शाटी कौकुमः पटः वासिष्टौ मंत्रः वासिष्ठी ऋक् वासिष्ठं साम इत्यादि । (४) षट् संज्ञक शब्द तथा युष्मद् शब्द एवं अस्मद् शब्द तथा तिङन्त एवं अव्यय शब्द तीनों (पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसक) लिङ्गों में समान हो रूप में प्रयुक्त होते हैं जैसे-पञ्च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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