Book Title: Shivkosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Karunashankar Veniram Pandya

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Page 378
________________ तृतीयकाण्डम् ३६२ लिङ्गादि निर्णयवर्गः ५ अरण्यं खं तथा पर्ण हिमं श्वभ्रं तथोदकम् । 'उष्णं शीतं बलं मांसं रुधिराक्षि द्रविणं मुखम् ॥२७॥ हेम शुल्वं फलं लोहं सुख दुःखं शुभाशुभम् । जलजानि च पुष्पाणि व्यञ्जनं लवणं तथा ॥२८॥ अनुलेपनं तथा पुण्यं पापश्च समुदाहृतम् । कोटि विहाय संख्याऽन्या शतादि परमावधिः ॥२९॥ लक्ष लक्षेति विज्ञेयमसिसुसन्तं स्वरद्वयम् । अन् अन शब्दान्तमाख्यातं कर्तृभिन्नार्थवाचकम् ॥३०॥ से भिन्न शब्द समझना चाहिये। जैसे-अरण्य (जंगल) शब्द खं (आकाश) शब्द तथा पर्ण (पत्ता) शब्द, एवं हिम (वर्फ) शब्द तथा श्वभ्र (बिल) शब्द एवं उदक शब्द नपुंसक लिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं । (१) उष्ण शब्द, शीत शब्द, बल शब्द, मांस शब्द, रुधिर शब्द, अक्षि (आँख) शब्द, द्रविण (धन) शब्द, मुखशब्द हेमन् (सुवर्ण) शब्द, शुल्व (ताम्र) शब्द, फल शब्द, लोह शब्द, सुखशब्द तथा जल में उत्पन्न होने वाले फूल विशेष वाचक कमल कुमुद कल्हार उत्पल वगैरह शब्द एवं व्यञ्जन तथा लवण शब्द, एवं अनुलेपन शब्द एवं पुण्य तथा पाप शब्द नपुंसकलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं। (२) कोटि शब्द को छोड़करे शत शब्द से लेकर अन्तिम अवधि परार्ध पर्यन्त संख्या वाचक शब्द नपुंसक होते हैं जैसे-शतम् सहस्रम्, अयुतम्, अर्बुदम् इत्यादि । (३) किन्तु लाख संख्या वाचक लक्ष शब्द' नपुंसक तथा स्त्रीलिंग होता है जैसे- लक्षम्, लक्षा इति । (४) दो स्वर (अच्) वाला असन्त उसन्त शब्द नपुंसक होता है। जैसे यशः पयः, तेजः, तमः, सर्पिः, हविः ज्योतिः, शाचः, वपुः, यजुः धनुः इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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