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तृतीय काण्डम्
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लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५
'सलोपान्त्यं त्रशब्दान्तं नो चेत् पूर्वेण बाधितम् । * संख्या पूर्वपदं रात्र शब्दान्तं समुदाहृतम् ॥३१॥ पात्राद्यन्तो यथा लक्ष्यं द्विगुरेकार्थवाचकः । द्वन्द्वैकार्थ समाहारोऽव्ययीभावस्तथैव च ॥ ३२ ॥ "संख्याऽव्ययात्परः पन्थाः समासान्तान्वितो भवेत् ।
(१) कर्ता से भिन्न अर्थ का वाचक अन शब्दान्त शब्द नपुंसक होता है, जैसे-गमनम्, रमणम् दानम्, कथनम् इत्यादि एवं अन् शब्दान्त शब्द भी नपुंसक होता है जैसे - सर्म, चर्म, वर्म, - नाम, धाम इत्यादि । (२) सकार और लकार उपान्त्य वाले त्र शब्दान्त शब्द नपुंसक होते है । जैसे- दात्रम्, पात्रम् वस्त्रम्, विसं, नम्, अन्धतमसम्, कूलम्, मूलम्, शूलम्, तूलम् इत्यादि किन्तु किसी पूर्व अपवाद से बाधित नहीं हो सका हो तो जैसेपुत्रः, वृत्रः इत्यादि । (२) संख्यावाचक शब्द पूर्वपद तथा रात्र शब्दान्त शब्द नपुंसक होता है । जैसे - त्रिरात्रम्, पञ्चरात्रम्, सप्तरात्रम् इत्यादि । ( ३ ) किन्तु एकार्थ वाचक तथा पात्रादि शब्दान्त द्विगु समास लक्ष्यानुसार नपुंसक होता है । जैसे- पञ्चपात्रम् त्रिभुवनम् इत्यादि किन्तु त्रिलोकी त्रिपुरी पञ्चपूली त्रिवली इत्यादि शब्द स्त्रीलिंग ही होता है । (४) एकार्थ वाचक समाहार द्वन्द्व समास तथा अव्ययीभाव समास नपुंसक होते हैं जैसे -पाणिपादम् अधिहरि, अधिगोपम्, अपदिशम् इत्यदि । (५) संख्यावाचक तथा अव्यय शब्द से परमें समासान्त प्रत्यययुक्त पथिन् शब्द नपुंसक होता हैं । जैसे- द्विपथम् त्रिपथम्, चतुष्पथम् विप, थम्, अपथम् कापथम् इत्यादि, किन्तु धर्मपथः अतिपन्थाः, सुपन्थाः यहां पर पुल्लिंग ही होता हैं क्योंकि संख्याव्ययादि नहीं हैं एवं समासान्त प्रत्यय नहीं हैं।
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